अनोखा जी चले बाजार

अनोखाजी चले बाजार।
टौर से हो फटफटि सवार।।
साथ में चली श्रीमति जी।
चहक रहे थे आज पतिजी।।
कितने अच्छे हैं टमाटर।
आओ खरीदे साथ मटर।।
क्या यार तुम भी हद करती हो।
क्या फिर साॅपिंग रद करती हो?
फेरीवाला था एक फुटपाथ पे।
लेकर बैठा वस्तु बहुत साथ में ।।
छलनी सूप और झाड़ू पोछा ।
आओ खरीदे चलकर सोझा।।
बस भी करो यार।
ये कैसा बाजार।।
मोहतमा गुमसुम चलती रही।
कुछ बातें उसको खलती रही।।
जैसे दिखा एक बर्तन दूकान।
फूटी कराही का आया ध्यान।।
कराही एक खरीदूँ क्या?
वही जवाब फिर से ‘क्या’!!
जबरन रुक गई मनिहारी के दूकान पर।
“ऊन सलाई दे दो भैया” लाई निज जुबान पर।।
व्यस्क मर्द के खातिर जितना ।
दे दो भैया मुझको उतना।।
घर आए हो गुस्से में लाल।
वस चीख रहे अनोखलाल।।
क्या करी खरीददारी तुमने?
यही खरीदी साड़ी तुमने ?
गुस्सा तो शांत करो मेरे लाला।
मेरे पास तो है दुसाला।।
मुझे तो रहना है घर में ।
तुम जाओगे दफ्तर में।।
निरुत्तर हुए अनोखा जी।
क्या पत्नी पाए चोखा जी।।
‘विनयचंद ‘ ये नारी है
ममता की अवतारी है।।
त्याग बलिदान की मूरत है ।
सम्मान की इन्हें जरुरत है ।।

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. ”विनयचंद ‘ ये नारी है
    ममता की अवतारी है।।
    त्याग बलिदान की मूरत है ।
    सम्मान की इन्हें जरुरत है ।”
    बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति है शास्त्री जी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, लाजवाब शिल्प। कथ्य को पाठक तक संप्रेषित करने में पूर्णतः सफल है यह रचना। लेखनी को सादर अभिवादन।

New Report

Close