Categories: शेर-ओ-शायरी
Tags: kavita

Mohit Sharma
unboundmohit
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हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर जड़ों को अपनी भूल गये मलमल के बिस्तरों में धँस के धरा की शीतलता भूल गये छूकर चलते…
कितनी दफ़ा उँगलियाँ अपनी जला दी तूने
कितनी दफ़ा उँगलियाँ अपनी जला दी तूने… ‘माँ’ मेरे लिए चंद, रोटियाँ फुलाने में ! कितनी दफ़ा रातें गवां दी, “माँ” तूने मुझे सुलाने में,…
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पत्थरों की तरह आदतें हो गयीं
हम भी रोये नहीं मुद्दतें हो गयीं। पत्थरों की तरह आदतें हो गयीं। जबसे बेताज वह बादशाह बन गया, पगड़ियों पर बुरी नीयतें हो गयीं।…
अकेले होने का मतलब
अकेले होने का मतलब हर बार बस उदास होना ही नहीं होता हो सकता था मैं भी बरबाद पास अगर मैं खुद के न होता।…
Bahut sahi kahan aapne
thanks
nyc
thanks anirudh
thanks Sarita
वाह बहुत सुंदर
Very