आँखों में रखा

आँखों  में रखा बुलंदिओं का जोश है
 यहाँ हर इंसा खुद में   मदहोश है

वहां से निकल तो आया था जहाँ शोर था
कैसे निकलू जो अपने ही अंदर सरफ़रोश है

कौन सी दुनिया को कोसते हो जी भर के
कौन नहीं  भला यहाँ अहसान-फरामोश है

न हवाओं न फ़िज़ाओं का कोई कसूर यहाँ
हर शख्स अपनी ही दौड़ का सोता खरगोश है

                               राजेश’अरमान’

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