आप आ जाते तो
गुनगुनी धूप है
इस ठंड में थोड़ा सहारा,
अन्यथा हम बर्फ बनकर
ठोस हो जाते।
इस गली में गुजरते
आपने देखा हमारी झोपड़ी को
अन्यथा हम गम भरे
बेहोश हो जाते।
इन दिनों मन जरा ढीला
बना है दोस्तों
आप आ जाते तो
हम भी जोश पा जाते।
इस तरह आपका भी मन
न होता खूबसूरत तो
हमें कविता न कहनी थी
वरन खामोश हो जाते।
——- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय
अतिसुंदर रचना
बहुत ही लाजवाब रचना है
वाह बहुत उम्दा, अति उत्तम
वाह …दोस्तों को याद करती हुई बहुत सुन्दर रचना लाजवाब अभिव्यक्ति
Very good
अतिसुन्दर
So nice