ईश ऐसा वर मुझे दे
ईश ऐसा वर मुझे दे
ईर्ष्या से दूर बैठूँ,
पंक्तियाँ लिख दूँ वहाँ
जिस ओर थोड़ा दर्द देखूँ।
देख अनदेखा नहीं
कर पाऊँ पीड़ा दूसरे की,
बल्कि खुद महसूस
कर पाऊँ मैं पीड़ा दूसरे की।
मैं किसी के काम आऊँ
सीख यह मिलती रहे,
उठ मदद कर दूसरे की
आत्मा कहती रहे।
ईश मेरा मन करे
कुछ इस तरह की बात बस
बस रहूँ सेवा में रत
कोई नहीं हो कशमकश।
Great poem, wow
बहुत सुंदर कविता
ईश ऐसा वर मुझे दे
ईर्ष्या से दूर बैठूँ,
पंक्तियाँ लिख दूँ वहाँ
जिस ओर थोड़ा दर्द देखूँ।
__________ कवि हृदय से निकली हुई बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां , श्रेष्ठ साहित्य परोसती हुई, और ईश्वर से बहुत सुंदर वरदान मांगती हुई बहुत ही लाजवाब रचना सुंदर अभिव्यक्ति और बहुत शानदार लेखन
Wow very nice
ईश ऐसा वर मुझे दे
ईर्ष्या से दूर बैठूँ,
पंक्तियाँ लिख दूँ वहाँ
जिस ओर थोड़ा दर्द देखूँ।
देख अनदेखा नहीं
कर पाऊँ पीड़ा दूसरे की,
बल्कि खुद महसूस
कर पाऊँ मैं पीड़ा दूसरे की।
ऊपर वाले से सुंदर प्रार्थना करती हुई पंक्तियां
अति उत्तम
वाह