ऊचाईयों के दौर में
ऊँचाईयों के दौर में
हर कोई ऊँचा उठना चाहे।
विनयचंद इस दौर में
आखिर पीछे रहते हो काहे।।
कर्म करो ऊँचाई पाओ
औरों को नाहीं गिराना तुम।
जो गिरे हुए को उठाओगे
कीर्ति यश वैभव पाना तुम।।
सबको साथ लेकर चलना
प्रस्थ करेगी कामयाबी की राहे।
ऊँचाईयों के दौर में
हर कोई ऊँचा उठना चाहे।।
वाह क्या बात कही है आपने।
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद पाण्डेयजी
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति शास्त्री जी
कर्म करो ऊंचाई पाओ,
औरों को नहीं गिराना तुम
बेहतरीन रचना है आपकी सर
बहुत कुछ कह गए आप अपनी कविता में। बहुत ही सुंदर प्रस्तुति है।
बहुत बहुत धन्यवाद बन्धश्रेष्ठ
आप ऊँचाई के उस मुकाम पर हैं
जिसके बारे में कोई सोंच भी नहीं सकता
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति