Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Related Articles
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
रात तूं कहां रह जाती
अकसर ये ख्याल उठते जेहन में रात तूं किधर ठहर जाती पलक बिछाए दिवस तेरे लिए तूं इतनी देर से क्यूं आती।। थक गये सब…
ज्यादा नहीं मुझे तो बस………..
ज्यादा नहीं मुझे तो बस एक सच्चा इंसान बना दे तूँ । एक बार नहीं चाहे हर बार सच में हर बार बना दे…
पथ के राही न भटक
=राही पथ से न भटक=योगेश ध्रुव”भीम” ××××××××××××××× अडिग मन राह शांत हो, निश्छल जीवन लेकर चल, चाहे भटके मन: चंचल, जीवन नाथ के तू चल,…
मुसाफिर अपनी राह
मुसाफिर अपनी राह से भटक रहा है मृग जाने किस चाह से भटक रहा है रहस्य दर्पण में नहीं आकृति में नहीं दर्पण किस गुनाह…
सुन्दर कविता
धन्यवाद
Nice line
धन्यवाद
उम्दा प्रस्तुति
धन्यवाद