कविता- उजाला घर मे हो |
कविता- उजाला घर मे हो |
मन मे जले दीप उजाला हर घर मे हो |
अंधेरा न कही जगमग हर शहर मे हो |
चमके ललाट राष्ट्र रहे चमक तिरंगे की |
सीमा बम धमाका कोई थोड़ा उधर मे हो |
बच्चो के हाथ फुलझड़िया तन नए कपड़े |
ऊंचे मकानो दिये रौनक थोड़ी इधर मे हो |
जले दिये घर सबके मकान टूटा ही सही |
खुशियो की चमक अब सबके नजर मे हो |
कच्चा या पक्का घर रंगोली सजेगी सबके |
मने दिवाली हिन्द लक्ष्मी हर बसर मे हो |
आओ मिल जलाए दिये दिल भी मिलाये |
सुख संपत्ति संपदा शांति हर गुजर मे हो|
मिले रिद्धी सिद्धि नित्य लक्ष्मी वास रहे|
दुख दुर्भिक्ष दूर असर भारती हर बहर मे हो |
श्याम कुँवर भारती (राजभर)
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
बोकारो झारखंड मोब -9955509286
अतिसुंदर रचना
हार्दिक आभार आपका पंडित की
चमके ललाट राष्ट्र रहे चमक तिरंगे की |
सीमा बम धमाका कोई थोड़ा उधर मे हो |
इन पंक्तियों में आपने समा बाँध दिया है
जैसी आपने कल्पना की है निश्चित ऐसा ही होना चाहिए
आपने सटीक शब्दों में अपनी बात कही है
हृदय तल से आभार आपका प्रज्ञा जी तारीफ के लिए
दीवाली के पर्व को राष्ट्र-हित मे मिश्रित कर के आपने अपनी कविता को बहुत ही सुन्दर रुप प्रदान किया है। बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण
हार्दिक आभार आपका गीता जी आपकी तारीफ से मै अभिभूत हूं
Very nice poem
Thank you Amit ji
Nice
Thanks