कविता
प्राण प्रग्या को बचाये चल रहा हूँ
कर प्रकाशित मै तिमिर को जल रहा हूँ |
अल्प गम्य पथ प्रेरणा देता मनुज
मैं उतुंग गिरि सा शिखर अविचल रहा हूँ ||
शिथिल वेग स्निग्ध परियों का शरन है
मै नही मतिहीन इसमें पल रहा हूँ |
मैं गिरा गति लय प्रौढ़ाधार में बहता हुआ
भूत से चल आज भी अविरल रहा हूँ ||
उपाध्याय…
nice one
Nice