कुदरत ने सिखलाया है
हर जीव को जीने का हक़ है,
जीवों ने डाली है अर्जी
कुदरत ने अपील सुनी है,
अब ना चले बस, मानव की मर्ज़ी
क्षुधा मिटाने की खातिर,
निर्दोषों को है मारा,
कैसा है शैतान वो मानव,
जीवों ने लगाया है नारा
क्षुधा मिटाने की खातिर
कुदरत ने फल, फूल बनाए हैं
फिर जीवों को क्यूं मारा जाए
वो भी तो कुदरत से आए हैं
कुदरत ने मानव को दिखलाया है,
“जियो और जीने दो “, सिखलाया है
ये शुद्ध हवा ये गंगाजल,
मिलते ही रहेंगे हमें प्रतिपल
ये संदेशा आया है,
सबको ही जीने का हक़ है
ये कुदरत ने सिखलाया है ।
✍️ गीता कुमारी।
, बहुत ही शानदार प्रस्तुति
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद प्रिया जी🙏
तत्सम और तद्भव शब्दावली का आवश्यकतानुसार सुंदर समन्वय किया गया है, प्रकृति पर सभी जीवों का सामान हक प्रतिपादित करते हुए सुन्दर कविता प्रस्तुत की गयी है.
इतनी सुंदर समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद 🙏
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
👌
Nice
Thanks allot kamla Ji 🙏
Very nice
Thanks allot Piyush ji 🙏