खुद से परेशान
सबका जन्मदिन आता हैं, आज तेरा भी हैं, इसमें खास कौन सी बात हैं
जो हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाये, उसकी ही सुनते हो तुम,, ये कौन सी बात हैं,,
कितनी भी परिक्षाये ले लो तुम इस सुदामा की,,
मगर कृन्दन पुकार इस सीने से नहीं निकलेगी,,
और तू भी इतना जरुर याद रख्नना कान्हा कि,,
जब जब मेरा दर्द उबलेगा,,
भाप बनकर तुझ तक जरुर पहुंचेगा,
और जब ये ख़ामोशी से तेरे पास पहुंचेगा,,
तेरे सिंहासन में हालन जरुर ले आएगा,,
फिर जब तेरी कुदृष्टि वाली सुमति से मेरा जीवन परिचय होगा,,
इतना दर्द होगा उस वक़्त तेरे दामन में कि,,
सीने का लहू भी बनकर जल बह जाएगा!!
मैं अभी तलक खामोश हूँ और चुपचाप अकेला चल रहा हूँ,,
इसका अर्थ कदाचित ये नहीं कि,,
मैं कमजोर हूँ,, या हालातो से हार मान बैठा हूँ,,
यत्र – तत्र – सर्वत्र बसते हो तुम,, सब जानते हो,,
मगर फिर भी इतना जान लो तुम कि,,
सिर्फ कुछ पल हौसले खातिर लोग तुम्हे,
मंदिरों, घरों, दिलों, नजरो में “अंकित” रखते हैं,
क्योंकि अर्जुन को भी कुरुक्षेत्र जीतने खातिर,,
सारथी कृष्ण की जरुरत पड़ती हैं!!
अगर तुम मेरा साथ दे भी देते हो फिर भी,,
मुझे तुम्हारा साथ पाकर मोक्ष नहीं चाहिए,,
क्योंकि मेरे माता- पिता गुरुओं ने,,
मुझे कर्म प्रधान रहना ही सिखाया हैं!!
मान लेता हूँ मैं भी कि मैं एक इंसान हूँ ,
सो एक ही जगह पर खुद से बेहतर कुछ भी अच्छा नहीं लगता,,
मगर तू तो फिर भी तू ही हैं कान्हा,,
इस केवट कि जीवन नैया पर श्री राम बनकर,,
विराजमान हो जाओ,, बेशक फिर,, मेरी एक गलती पर,,
मेरे ही टूटे रथ के पहिये से मेरा संहार कर देना,,
……अंकित तिवारी ……
Bahut Achi Kavita
Shukriya dost
Very nice
Nice poem!
Shukriya
bahut hi umda…behatreen
Good
वाह जी वाह
बहुत सुन्दर