जला दिया क्यों मुझको साजन ???
जला दिया क्यों मुझको
ओ साजन!
ऐसी क्या गलती कर बैठी थी
मैं तो अपने सास-ससुर की पूजा देवों सम करती थी
ननद को अपनी बहन की तरह मानती थी
देवर को भैया कहती थी
जला दिया क्यों मुझको साजन
मैं तो तेरी धर्मपत्नी थी
तुम जो कहते थे वो करती थी
तुम्हारी ज्याती भी सहती थी
देखा करती थी पराई स्त्रियों के संग में
पर फिर भी मैं चुप रहती थी
तेरी छाया देख के मैं घूंघट करके पीछे चलती थी
जला दिया क्यों मुझको साजन !
मैं भी तो एक इंसान ही थी…
अति उत्तम
धन्यवाद भाई
अति सुंदर
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सुन्दर अभिव्यक्ति
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अतिसुंदर
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