जवां दर्द
तन्हाई के आलम में घुट-घुटकर
जब दर्द जवां होता है
चाहत में खिले फूलों का
पत्थर पर निशां होता है ।
टूट कर बिखरने से पहले
यूं बाहों में समेट लेते हैं
जैसे धरती को समेटे
सारा आसमां होता है।
सच है कि दूर रहने से प्यार बढ़ता है
चुप रहने की कसम खा कर भी
राज ए इजहार बयां होता है।
जवां दिल को तड़पने दूं
या कुछ घड़ी आराम दे दूं
सोचकर लम्हें मोहब्बत के
वक्त पर गुमां होता है ।
नींद आती नहीं चैन भी खोया सा है
प्रेम के रोग में ना जाने
ये दर्द कहां -कहां होता है ।
चाहत में खिले फूलों का
पत्थर पर निशां होता है
तन्हाई के आंगन में घुट-घुटकर
जब दर्द जवां होता है ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज
अतिसुन्दर
आभार
सुंदर
आभार
सुंदर भाव तथा बेहतरीन शिल्प के साथ
अपनी रचना में आपने
जान डाल दी
आभार