तुम झूठ किसी और दिन बोलना
सच कभी हमारा दामन नहीं छोड़ता
कोई भटकाव हमारा प्रण नहीं तोड़ता
जब भी विरोधाभास का आभास हुआ
हम कोई प्रतिक्रिया देते वक़्त नहीं भूले
अपने शब्दों को बोलने से पहले तोलना
फिर भी जाने क्यूँ कहने वाले कह ही गए
तुम झूठ किसी और दिन बोलना
तुम झूठ किसी और दिन बोलना
हमने फिर भी बेरुखी नहीं अपनायी
लाख चाहे लफ़्ज़ों के हेर फेर की
अक्सर बेतरतीबी से चोट खायी
लेकिन सम्मान देने की खातिर
हमने कभी फटे में टांग न अढ़ाई
क़श्मक़श में दिल से जो बात की
बस अपने दिल से ये आवाज़ आयी
कभी अपने इस बड़ी कमज़ोरी का
तुम राज़ किसी के आगे नहीं खोलना
फिर भी जाने क्यूँ कहने वाले कह ही गए
झूठ किसी और दिन बोलनातुम
तुम झूठ किसी और दिन बोलना
Nice
Thanks sir🙏🏼
लाज़बाब
Thanks sir🙏🏼
बहुत खूब
Thanks sir🙏🏼
nice
Thanks anshita
Nice line
Thank you🙏🏼
बेहतरीन
Thank you🙏🏼
Bahut khoob
अति उत्तम रचना सत्य सत्य ही होता है और झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता