तू किसी रेल-सी गुजरती है…!!
तू किसी रेल-सी गुजरती है
मैं पटरी-सा थरथराता हूँ
दूर तुझसे नहीं रहता
तेरा स्पर्श पाता हूँ
जवाबों की सवालों की
कहाँ बातें रहीं अब तो
तू मेरी साँसों जैसी है
मैं जीवनदान पाता हूँ
बरस कर बूंद-सी तू मिलती
मेरी सर- जमीं पर है
बना मैं सीप से मोती मगर
बिखरा-सा जाता हूँ
धूप हो चाहें गर्मीं हो
तू पीपल-सी घनेरी है
तेरा आगोश में आकर ही मैं
आराम पाता हूँ…
Great poem
Thanks a lot
वाह
Thanks a lot