दशहरा हो मुबारक आपको
दशहरा पर्व यह पावन
मुबारक हो सभी को,
मिटे सारी बुराई
खिले बस खूब अच्छाई।
रावण सरीखी वृतियाँ
सब दूर हो जायें,
जीभ में शारदा माँ और
वाणी में मिठाई।
भलों का मार्ग
कांटों से रहित हो,
बुरों की बुरे कामों से
हो जाये विदाई।
प्रतिभाएं जो
मुरझा सी रही हैं,
उन्हें कुछ खाद मिल जाये
सूखते पुष्प-पौधों की
निरंतर हो सिंचाई।
दशहरा हो मुबारक आपको
दूर भागे सब बुराई,
खिले बस खूब अच्छाई
खिले बस खूब अच्छाई।
बहुत सुंदर बहुत लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना है कवि सतीश जी की । दशहरे के पावन पर्व के अवसर पर अच्छाइयों के खिलने की,सभी बुराइयों के दूर होने की बहुत ही बेहतरीन और शानदार कविता । मां शारदा से सबकी वाणी में मिठास की प्रार्थना भी है । सुंदर लय बद्ध शैली की प्रधानता लिए अति उत्तम प्रस्तुति
इस बेहतरीन समीक्षागत टिप्पणी हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद, आपकी यह टिप्पणी प्रेरणादायक व उत्साहवर्धक है।
वाह सर वाह, बहुत लाजवाब
अति सुंदर रचना
अतिसुंदर