दुःखी क्यों होते हो मित्र
दुःखी क्यों होते हो मित्र
मैं बढ़ रहा हूँ,
तुम भाग्य से पा चुके हो
में संघर्ष से पा रहा हूँ।
तुम कहते हो तो रुक जाता हूँ
गुमनाम हो जाता हूँ,
तुम्हारे या तुम्हारे अपनों के लिए
अपने कदमों को यहीं पर
विराम दे जाता हूँ।
बहुत खूब, बहुत शानदार
सादर धन्यवाद जी
वाह वाह
बहुत सारा आभार
एक मित्र को सम्बोधित करती हुई बहुत सुंदर रचना।
सुन्दर समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद
Nice
सादर धन्यवाद शास्त्री जी
समर्पण के सुंदर भाव
सादर धन्यवाद जी
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी