दूजे की भी मदद कर(कुंडलिया छन्द)
दूजे की भी मदद कर, अपना ही मत देख।
ठिठुर रहे जो सड़क पर, उनको भी तो देख।
उनको भी तो देख, खिला दे रोटी उनको,
पहना दे रे वस्त्र, इतना सक्षम है तू तो।
कहे ‘लेखनी’ आज, जरूरत जिनको है वे
पीड़ा में हैं जरा, मदद उनकी तू कर ले।
——- डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
Very nice poem, wow
बहुत ही अनुपम रचना की है सर
बहुत खूब
कवि के कोमल हृदय की भावनाएं दृष्टिगत हो रही हैं इस कविता में, जो लोग सक्षम हैं ,उनसे भी ग़रीबों की मदद करने को कहा गया है
बहुत सुंदर शिल्प और भाव लिए कुंडलिया छंद की बहुत सुन्दर रचना
अत्यंत उम्दा कुंडलिया छंद की रचना, वाह
अति सुन्दर रचना