पूर्ण विराम
इंसानियत कब इंसान की जिंदा होगी
क्या तब जब हर आत्मा से निंदा होगी
जागो देखो सोचो
सुलग रहा है समाज
कब तक बंद रखोगे अपनी आवाज
बोलो जो चाहते हो, कहो जो सोचते हो
किसी का इंतजार अब नहीं
समाज गूंगा है, बहरा है
खुद अपनी सुनो
वही करो जो बेहतर है
काट दो हर उस जड़ को
जो दीमक बनकर
खोखला कर रही है मर्यादाओं को
बदलो इन रिवाजों को
जो सबके लिए नहीं है
एक लंबी जीवन यात्रा
बिना लक्ष्य कब तक
हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार में
खो रहा है तुम्हारा देश
उठो जागो हिंदुस्तान
कब लगेगा पूर्ण विराम
कब लगेगा पूर्ण विराम
वीरेंद्र सेन प्रयागराज
इंसान को धिक्कारती हुई बेहद सराहनीय रचना है जो मानव को मानवा गुण जगाने के लिए प्रेरित करती है और समाज को सुधारती एवं जगाती हुई प्रतीत हो रही है
रचना की समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार
अतिसुंदर भाव