प्रेम
इस भरी बरसात में सब धुल गई
बाहरी पर्तें मेरे व्यवहार की,
अब छुपाऊँ किस तरह से झुर्रियां
जो मेरी असली उमर दर्शा रही।
खोट है मेरी नियत में आज भी
आप करते हो भरोसा इस कदर
सच समझते हो मेरे हर झूठ को
प्रेम करते हो भला क्यों इस तरह।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत
उत्तराखंड
Waah👍
dhanyvaad ji
अच्छी कविता
thanks
Sundar Kavita Hai
धन्यवाद जी
👌👌👌👌
Thanks
अच्छा प्रयास
धन्यवाद जी
Good
सादर धन्यवाद शास्त्री जी