प्रेम

प्रेम, जिसमें मैं ही मैं हो

हम न हो

डूब गए हो इतने के

उबरने का साहस न हो

वो प्रेम नहीं एक आदत है

उसकी

जो एक दिन छूट जाएगी

फिर से जीने की कोई वजह

तो मिल जाएगी

जब तू उस घेरे के बाहर

निहारेगा

तब ही तेरा आत्म सम्मान

तुझे फिर से पुकारेगा

तू झलांग लगा पकड़ लेना

उसकी कलाई को

उसकी आदत के चलते

तूने नहीं सोचा खुद की

भलाई को

तब ही तू पुनः स्वप्रेम

कर पायेगा

फिर से खुद को “जीता ”

हुआ देख पायेगा

क्योंकि वो प्रेम नहीं जिसमे

कोई डूबा तो हो

पर उभरा न हो

उसके सानिध्य में

और निखरा न हो ….

उबरना : विपत्ति से मुक्त होना/बचना

उभरना : ऊपर उठना/उदित होना

अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close