प्रोत्साहन
प्री बोर्ड की परीक्षा का,
परिणाम जब आया
उसने अपेक्षा से कम ही अंकों को पाया।
“क्यों अंक अच्छे नहीं आए हैं तेरे”
वह खाता था डाँट पिता से साँझ और सवेरे।
रोज़-रोज़ की डाँट से,
एक दिन तंग आया
घर छोड़ने का उसने मन बनाया।
दो-तीन जोड़ी कपड़े भरकर,
वह बस्ते में लाया,
अपनी इस इच्छा को,
अपने एक साथी को बतलाया।
साथी छात्र ने उसको बहुत समझाया,
अरे प्री बोर्ड ही तो है भाई
,सालाना परीक्षा में अभी समय है
करो और तैयारी।
साथी छात्र ने चुपके से,
शिक्षिका को यह बात बताई
शिक्षिका सुनते ही बहुत अधिक घबराई।
फोन मिलाया उसके पिता को
और उसके घर आई।
प्री बोर्ड में अंक कम ही देते हैं हम,
यह राज़ की बात पिता को समझाई।
बच्चे को प्रोत्साहित करना,
इसी में है सबकी भलाई।
हतोत्साहित ना करना उनको,
उनकी किशोरावस्था है आई।
शिक्षिका की बातें सुनकर,
“पिताजी” को समझ आई।
हाथ जोड़कर बोले वो,
अब नहीं डाँटूगा उसको।
प्रोत्साहन ही देंगे हम,
यह कसम है खाई।।
_____✍️गीता
बच्चे को प्रोत्साहित करना,
इसी में है सबकी भलाई।
हतोत्साहित ना करना उनको,
उनकी किशोरावस्था है आई।
——– कवि गीता जी की नजर से जीवन का कोई भी कोना अछूता नहीं। कितना सुंदर वर्णन किया गया है। काबिलेतारीफ रचना है।
इस बेहतरीन और लाजवाब समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी। प्रोतसाहन हेतु हार्दिक आभार
बहुत सुंदर
बहुत-बहुत आभार भाई जी 🙏
प्री बोर्ड की परीक्षा का,
परिणाम जब आया
उसने अपेक्षा से कम ही अंकों को पाया।
“क्यों अंक अच्छे नहीं आए हैं तेरे”
वह खाता था डाँट पिता से साँझ और सवेरे।
बच्चो को प्रोत्साहित करना ही अच्छा है
यही कहती रचना