फैंका हुआ दाल-चावल
इस गली में
नजारा रोज दिखता है,
प्लास्टिक की थैलियों में
भर कर फैंका हुआ दाल-चावल
हर रोज दिखता है।
खुशबू आती है,
सोचता है गरीब मन,
खुदा भी किस तरह की
किस्मत लिखता है,
किसी के पेट भरने को
दो कौर नहीं,
किसी को फैंकने को मिलता है।
सोच तारीफ़ ए क़ाबिल है।
बहुत खूब
गरीबों के भावों को व्यक्त करती हुई कवि सतीश जी की बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति
बहुत खूब