बस यादों में रह जाते हैं
जाने कहाँ विलीन
हो जाते हैं,
कल तक जो बोलते थे,
मुस्कुराते थे
अपनी भावना को व्यक्त
करते थे वे,
जाने क्यों माटी हो जाते हैं।
शून्य हो जाते हैं।
न कोई अहसास
न कोई वेदना,
बस निर्जीव हो जाते हैं।
पंचतत्व में मिल जाते हैं,
धुंए में उड़ जाते हैं,
जल में मिल जाते हैं
बस यादों में रह जाते हैं।
जाने कहाँ चले जाते हैं।
बहुत ही सुन्दर रचना प्रस्तुत किया है आपने। आपको मेरी ओर से बहुत धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही खूबसूरत कविता लिखी है आपने सर
सादर धन्यवाद
अत्यंत गहरी कविता
धन्यवाद
इस दुनियां से जाने के बाद आए जब अपनों की याद तो यही एहसास होता है ।बहुत ही संजीदा रचना
सुन्दर समीक्षा हेतु सादर आभार
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत बधाई