बेर लग पाये नहीं
कोपलें फूटी अनेकों
पेड़ बन पाये नहीं,
झाड़ियां उग आई मन में
बेर लग पाये नहीं ।
स्वाद था मीठा सभी में
जीभ में परतें जमीं थी
इसलिए मीठी नजर
महसूस कर पाये नहीं।
इस तरह हम खुद ही खुद में
स्वाद ले पाये नहीं,
उलझनों में घिरते- घिरते
पेड़ बन पाए नहीं।
लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर
अतिसुन्दर टिप्पणी हेतु सादर अभिवादन, सादर धन्यवाद
अलग खयाल के साथ सुंदर रचना
बहुत सारा धन्यवाद जी
Sunder
सादर अभिवादन और धन्यवाद शास्त्री जी
लक्षणा शक्ति का सुन्दर प्रयोग , बेहतरीन
सुन्दर समीक्षा हेतु सादर धन्यवाद सर जी
बहुत खूब