मदद करनी होगी
जो कर सकता है उसने
उनकी मदद करनी ही होगी,
जो कड़कड़ाती ठंड में भी
खुले में सोते हैं।
छोटे छोटे बच्चे
ठिठुरते हैं तो
भीतर ही भीतर रोते हैं।
आने वाला है ठंड का मौसम
सोच कर ही उनकी
रूह कंपकंपाने लगती है।
हमें महलों में दो रजाई के बाद भी
ठंड लगती है,
वे खुले में
कम वस्त्रों में
किन शस्त्रों से
ठंड का मुकाबला करेंगे।
मदद करनी होगी।
सरकार को अभी से
व्यवस्था करनी होगी,
अन्यथा फिर वही पुराने
समाचार सुनने को मिलेंगे।
विचारणीय रचना
अति सुन्दर और सौम्य भाव से परिपूर्ण कवि सतीश जी की बहुत सुन्दर रचना । गरीबों का दर्द बयां करती हुई बहुत सुंदर प्रस्तुति
अतिसुंदर भाव