यदि हो अमावस चाँद दो( मधुमालती छंद)
आओ चलो बिंदास बन
निज राह को नवगीत दो,
हो उलझनें जिस राह में
उस राह को भी गीत दो।
कर बांध मुट्ठी बांध लो
यदि हो अमावस चाँद दो,
रात कर दो दोपहर तुम
सबको उजाला बाँट दो।
असहाय की कर लो मदद
तुम शेर को भी माँद दो।
यदि हों कदम गंदी जगह
खुद को स्वयं से डांट दो।
बहुत सुन्दर कविता
बहुत ही जबरदस्त लिखते हैं सर आप। आपकी लेखनी दमदार है वाह वाह
बहुत ही बढ़िया रचना
आओ चलो बिंदास बन
निज राह को नवगीत दो,
हो उलझनें जिस राह में
उस राह को भी गीत दो।
__________यह कवि सतीश जी की बहुत ही उच्च स्तरीय रचना है। जीवन में सकारात्मकता बिखेरते हुए उलझन में भी गीत गाते हुए और अमावस की काली रात में दोपहर जैसी क्षमता लाते हुए बहुत सुंदर जीवन दर्शन से सुसज्जित अति सुंदर कविता। भाव और शिल्प के सौंदर्य ने कविता में चार चांद लगाए हैं
बहुत सुंदर
Very beautiful