रजाई की महिमा
**हास्य रचना**
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सुबह-सुबह उठो नहीं,
रजाई में पड़े रहो
सूर्य की लाली हो
या पापा की गाली हो,
तुम निडर उठो नहीं,
तुम निडर डटो वहीं
बेशर्म बन के अड़े रहो,
रजाई में पड़े रहो
बहुत ज्यादा ठंड है,
ये ठंड बड़ी प्रचंड है
हवा भी चल रही,
धूप नहीं निकल रही
कोहरे की दस्तक द्वार पर,
और भी खल रही
बहुत ठंडा जल है,
ठंड बढ़ रही प्रतिपल है
माननी नहीं है हार,
पड़ ना जाओ तुम बीमार
चाय का अनुरोध हो,
कोई उठाए उसका विरोध हो
प्रातः हो या रात हो,
बस, रजाई में पड़े रहो
______✍️ गीता
वाह वाह क्या बात है!!!!!!! अतिसुंदर रचना
सुंदर समीक्षा हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
वाह ।आखिर आपने मुझे मुस्कराने पे विवश कर ही दिया।
समीक्षा के लिए बहुत-बहुत आभार सर
मेरे मन की भावना प्रकट की है आपने…
बहुत सुंदर विनोद प्रिय हास्य रचना…
आपकी सुंदर समीक्षा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी
अत्यंत उम्दा हास्य रचना, हास में महारत है। बहुत खूब
आपकी सुन्दर समीक्षा और प्रेरणा हेतु आपका
बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी