समंतराल
ना दर्द है
ना धूप है
यह कैसी दुनिया लगे बेदर्द है
हा खुश हूं मैं
हा बेसुध हु मै
अपने दुनिया मे बेशक सफल हु मै
पर खलती तेरी कमी
बेजान सी यह ज़िन्दगी
यह आंखों की नमी ढूंढे तेरी गली
यह सब कुछ लगे बेमाना
जूठी लगे यह मेरा सफरनामा
क्यों ज़माने के सब बंधन तोड़ तू नहीं मिलती
हाथो की लकीरें क्यों नहीं मिलती जिस तरह कभी मिलती थी
समंतराल सी क्यों जीते है हम अपनी अपनी ज़िंदगी में
क्या मुझसे मिलने की कसीस तुझे भी होती है
या खुदा यहीं दास्तान ए ज़िन्दगी सिर्फ मेरे लिए लिखी है
अच्छी रचना
Thanks
Good
Thanks
Good
Thanks
वाह
Thanks
Nice
Thanks
वाह
Thanks
Nyc
Thanks