इम्तिहा
“इम्तिहा” योगेश ध्रुव “भीम”
“जिंदगी की डोर खिंचते चल पड़े हम,
मंजिल की तलाश पैरो पर छाले पड़े”
“बिलखते हुए सवाल लिए पापी पेट का,
दर-दर भटकते लेकिन हल ढूढ़ते ढूढ़ते”
“चिराग जलाते हुए जीने की तमन्ना लिए,
दर्द बयाँ करू कैसे चिराग तु बुझाते चले”
“डगर भी कठिन इम्तिहा की मौन है हम,
मेरे परवर दिगार रहम नाचीज पे तू कर”
Nice
धन्यवाद सर
Nice
धन्यवाद मैडम जी
Nyc
वाह
Good