कहाँ है हमारी संवेदना
आज हम कहाँ और कहाँ है हमारी संवेदना
भूल गयें अपनों को,कहाँ कैसी है वेदना ।।
भूल बैठे उन भावनाओं को
जब किसी मृत के शव पर लिपटकर रोया करते थे
देते अंतिम विदाई, सुध देह की खोरा करते थे
आज हैं ऐसी दूरियां
मृतक को पहचानने से भी इन्कार है हमें
मलकर भी ना अपनों का साथ
ना कफन ना वो चार कंधे, ना मुखाग्नी की रश्म
ना अंतर्मन को छेदती वो वेदना ।।
बदल गये सारे दस्तूर
पीङित को छूना नहीं, रहना दूर
भरा-पूरा परिवार,पर किसी को पास पाया नहीं
छटपटाते रहे, आवाज़ लगाते रहे,पर कोई आया नहीं
थोड़ा-सा अपनापन क्या,अंतिम संस्कार भी भाया नहीं
ना निड खून,ना रिश्तेदार,दूर तच अपनों की छाया नहीं
मौत इंसानो से भी पहले इन्सानियत को आई है जिन्दगी जा ही रही,रिश्तो में भी वीरानी छायी है
संक्रमणमुक्त होगा युग,पर क्या जागृत होगी मानव की चेतना ।।
सुमन आर्या
आजकल तो दुखद घटना पर बस फोटो और वीडियो ही बनाए जाते हैं कोई किसी की मदद नहीं करता मगर वीडियो बनाने के लिए सब आ जाते हैं
वाह
बहुत सुंदर