प्रेम से भिक्षा

कविता- प्रेम से भिक्षा
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प्रेम है शिक्षा,
प्रेम से भिक्षा,
प्रेम ही सब कुछ ,
बिना प्रेम नहीं-
जग मे जीने की इच्छा|
प्रेम ही देखो,
युद्ध कराये,
प्रेम ही देखो,
बुद्ध बनाये|
मातृभूमि से,
प्रेम इतना था,
छोड़ के कुनबा जान गवाये|
दो दिल जुड़ते ही,
टूट जाते हैं,
लाख मुसीबत सहकर भी,
अनजाने पथ से होकर,
परदेश में जा के जीते हैं|
लाख बुराई हो कलुआ में,
गोरी मात पिता से युद्ध करे,
बारहमासी नाक बहे,
सन जैसे बाल रहे,
आख से कानी, तन से काली,
गोरका ओसे प्रेम करे,
20 की लड़की,
30 का लड़का,
देखो जग में कैसा प्रेम चले,
चार चार बच्चों की अम्मा,
ब्वायफ्रेंड से बात करें|
हवा को किसने देखा है,
लहरों को किसने मोड़ा है,
प्यासी जब जब धरती हो,
अंबर प्यास बुझाता है,
प्रेम कोरोना जुड़वां भाई,
जब दुख मिलता तब पता चले,
एक दवा को जाये,
एक फोन पे रोये,
तब जनता को पता चले,
14 दिन का वनवास ओ झेले
हर 24 घण्टे रोता रहें,
तब माता पिता के आसूं बहे|
बढ़ा निराला, प्रेम ही देखो,
प्रभु जूठे बेर भी खा लेते हैं,
प्रेम की उपमा प्रेम ही देखो,
पापी खातिर –
जीसस सूली पर चढ़ जाते हैं,
जिसने थूक दिया जिसने किले ठोकी,
अपने अपराधी को भी माफी देते हैं|
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**✍ ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’

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