महफ़िल का माहौल
महफ़िल का माहौल
इस कदर न बिगाडिए
किसी पर यूॅं कीच न उछालिए
खुद के गिरेबां में
ग़र झाॅंक सको तो ठीक
वरना किसी और पर यूॅं,
तोहमत तो ना लगाइए l
ताप हमारे अंदर भी हैं
आपके भीतर भी होगा l
सरे आम हमें,
यूॅं ना आजमाइए l
जाइए पहले देख कर आइए आईना,
फिर किसी और पर तोहमत लगाइए॥
______✍ गीता
Reality is zero and your poem is universal truth. JAY RAM JEE KI
Thanks
बहुत सटीक कथन व सुन्दर रचना, सभी को केवल साहित्य सृजन की ओर बढ़ना चाहिए।
कविता की इतनी सुंदर और सटीक समीक्षा करने के लिए और कविता का मर्म समझने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कमला जी हार्दिक आभार
कवि गीता जी की बहुत सुन्दर, और सटीक रचना है यह। लेखनी का अभिवादन। भाव, भाषा व शिल्प का बेहतरीन तालमेल
कविता की सुंदर और सटीक समीक्षा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी, बहुत-बहुत आभार, अभिवादन सर
वाह, बहुत ही सच्ची बात लिखी है आपने
बहुत-बहुत धन्यवाद पीयूष जी
बहुत खूब
हार्दिक आभार चंद्रा जी
महफ़िल का माहौल
इस कदर न बिगाडिए
किसी पर यूॅं कीच न उछालिए
खुद के गिरेबां में
ग़र झाॅंक सको तो ठीक
वरना किसी और पर यूॅं,
तोहमत तो ना लगाइए l
उत्तम लेखन सही बात कही
खुद के गिरेबान में झांकने की आवश्यकता होती है दूसरे पर उंगली उठाने से पहले…
Thanks for your nice compliment