बच्चे हम फूटपाथ के
बच्चे हम फूटपाथ के,
दो रोटी के वास्ते,
ईटे -पत्थर तलाशते,
तन उघरा मन बिखरा है,
बचपन अपना उजड़ा है,
खेल-खिलौने हैं हमसे दूर,
भोला-भाला बचपन अपना,
मेहनत-मजदूरी करने को है मजबूर
मिठई, आईसक्रीम और गुबबारे,
लगते बहुत लुभावने ,
पर बच्चे हम फूटपाथ के,
ये चीजें नहीं हमारे वास्ते,
मन हमारा मानव का है,
पर पशुओं सा हम उसे पालते,
कूड़ा-करकट के बीच,
कोई मीठी गोली तलाशते,
सर्दी-गर्मी और बरसात,
करते हम पर हैं वर्जपात,
पग -पग काँटे हैं चुभते,
हम फिर भी हैं हँसते,
पेट जब भर जाए कभी,
उसी दिन त्योहार है समझते,
दो रोटी के वास्ते पल-पल जीते -मरते,
बच्चे हम फूटपाथ के ।।
Amazing 🙂
Thanks a lot
Bahut jyada kuch kah diya .really it very effective
Thanks for appreciating
very nice
Thanks Neetika ji
badhaai ho ritu ji
Thanks Anirudh ji
behatreen kaavya
Thanks Bunty ji
bahut khub kaha aapne.., really nice
Thanks for appreciating
Thanks for appreciating Dinesh ji
always welcome 🙂