चमकौर की वो रात

धोर अंधेरा शीत लहर संग
बादल नभ से किनमिन है।
घेर लिया मुगलों ने हमको
बचना अब नामुमकिन है।।
परवाह नहीं वो हजारों में
पर हम भी पूरे मन भर हैं।
आज्ञा दे दो हमें पिताजी
लड़ने को हम तत्पर हैं।।
कुँवर अजीत थे सतरह के
और पंद्रह के जुझार थे।
लड़ने लगे जब सिंह के जैसे
वीर बड़े बलकार थे।।
रात शांत होने से पहले
शांति चहुदिश छाई थी।
शांत हो गए वीर भी दोनों
बलिदानी की ऋतु आई थी।।
“विनयचंद “इन साहबजादे को
नमन करो सौ बार।
मातु पिता वीरा के खातिर
जीवन किया न्योछार।।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,सतश्री अकाल,,,,,,,,,,,,,,,,,

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