क्योंकि मैं इंसान हूं
“क्योंकि मैं इंसान हूं ”
इंसानियत है मेरे अंदर,
क्योकि मैं इंसान हूं ।
धर्म है मेरे में मानवता का;
और बंधन भी है ,
नैतिकता का अंदर;
क्योंकि मैं इंसान हूं।
अगर मैं मान लूं अपने अहम् की;
कर दूं राख अपने संयम की,
मानो फिर एक हैवान हूं।
इंसानियत है मेरे अंदर ,
क्योंकि मैं इंसान हूं ।
समझू ना मैं औरों को कुछ भी ,
करू मनमानी अपने मन की,
समझो फिर शैतान हूं ।
इंसानियत है मेरे अंदर ,
क्योंकि मैं इंसान हूं।
भ्रम है मोह माया ,
इसको कोई समझ ना पाया,
अगर बनूं में हमदर्द किसी का,
बांटू खुद से ;दुख- दर्द किसी का।
समझो फिर एक गुणवान हूं।
इंसानियत है मेरे अंदर ,
क्योंकि मैं इंसान हूं।
…….. मोहन सिंह मानुष
सुंदर रचना
धन्यवाद 🙏
इंसानियत पर प्रकाश डालने का सफल प्रयास किया गया है, वास्तव में इंसान वही है जो दूसरे का दर्द अपना दर्द समझे, तत्सम और तद्भव शब्दावली का यथानुरूप समन्वय किया गया है, सुन्दर कविता है.
बहुत बहुत आभार व धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना
अच्छा
आपने मानवता के विभिन्न पक्ष दिखाए हैं जिस प्रकार सूरदास ने
वात्सल्य का कोना कोना छक्का था उसी प्रकार आपने मानवता के सभी पक्षों को उ जागर किए हैं