बरखा ऋतु

आज फ़िर मेघा बरसे, रिमझिम – रिमझिम,
मन – मयूर नृत्य कर उठा, छ्मछम – छमछम।
ठंडी – ठंडी पवन चली है,
खिल उठे सारे वन – उपवन।
वृक्ष भी नाचें ,झूम – झूमकर,
लिपटी लताएं चूम – चूमकर,
गीत सुरीला गाती हैं।
बरखा ऋतु आने से आई ,नई कोंपल हर शाख
मेरे मन भी उठी उमांगें, छू लूं मैं आकाश।

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Responses

  1. शब्दों का आपने बहुत ही अच्छा ख्याल रखा है
    यह गाने में रोचक हो जाता है
    बहुत खूबसूरत कविता

  2. आपकी लेखनी बहुत ही बेहतरीन है। आपने सुन्दर रचना की है, यह विलक्षणता सदैव यूँ ही निखरती रहे

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