कुछ नया तो नहीं
तिल-तिल के जलना,
मिलना -बिछङना
कुछ नया तो नहीं
रोज की बात है ।
जैसे दिनकर का जाना,
संध्या का मुस्काना,
गगन धरा के मिलन का भरम
कुछ नया तो नहीं
रोज़ की बात है ।
हर सुबह नयी
उम्मीदें जगाना
रात को, सुनहले पलों के
ख्वाब सजाना
फिर दैनिक क्रियाकलापों में
बिखर कर रह जाना
कुछ नया तो नहीं
रोज़ की बात है ।
थोङी- सी और लगन
मन्जिल तक पहुँचाती,
कुछ ख़ास ख़्वाहिशों की,
हर दिन की अनदेखी
असफलता दिलाती
बगैर ईमानदार कोशिश की ही
सफलता पाने की चाहत
कुछ नया तो नहीं
रोज़ की बात है ।
Waah waah
सादर आभार
बहुत खूब
सादर आभार
Kya bat h✍👌👌
सादर आभार