धरती सचमुच माता है
धरती तो सचमुच माता है
सारा बोझ इसी पर तो है,
जन्म इसी पर मरण इसी पर
सारा बोझ इसी पर तो है।
हम अपने स्वारथ की खातिर
पाप कर्म में रत रहते हैं,
कभी जरा सा पुण्य कर दिया,
गर्वित मन में रहते हैं।
जरा किसी को दान कर दिया
हम समझे राजा बलि खुद को
धरती सारा दान कर रही
कभी जताती नहीं है खुद को।
अज्ञानी हम इसके तल पर
बुरे कर्म करते रहते हैं,
इसका सीना छलनी करके
अपना हित साधा करते हैं।
मगर धरा का धैर्य जिसे
वेदों ने भी गुणगान किया,
उसी धैर्य की मानव ने
अनदेखी की, अपमान किया।
प्राण बचाने को भोजन
देती है, धरती माता है,
तरह तरह के मधुर फलों को
हमें खिलाती माता है।
अपने तल पर हमें सुलाती,
प्राणवायु से थपकी देती,
हर इच्छा पूरी करती है
धरती सचमुच माता है।
सुंदर भाव।
वाह धरती माता पर जबरदस्त कविता।
लय औऱ भाव दोनों ही दृष्टि से उच्चस्तरीय कविता
Beautiful
शानदार
धरती की महत्ता को ख़ूबसूरती से दर्शाती हुई कवि सतीश जी की बेहद भाव पूर्ण रचना।”मगर धरा का धैर्य जिसे वेदों ने भी गुणगान किया,उसी धैर्य की मानव नेअनदेखी की, अपमान किया।प्राण बचाने को भोजन देती है, धरती माता है, ” कवि ने सच की लिखा है कि धरती हमारी माता है,खाने को ,रहने को देती है ।
बहुत ही सच्ची और सुंदर पंक्तियां, लाजवाब लेखन बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही खूबसूरत वाह वाह
धरती माता का सुंदर चित्रण। धरती सचमुच माता की तरह हमारा पालन पोषण करती है और अपने ऊपर हो रहे हमारे अत्याचारों को काफी धीरज के साथ सहती है। सचमुच बहुत ही सुन्दर कविता।
Wah bhut khub🙏🙏
अतिसुंदर