किसान

कितनी भी धूप हो, कितनी भी ठण्ड हो काम पर अपने लगे ही रहते दिन हो या रात हो,सुबह हो शाम हो खेत पर हल…

आवाज़

हिल रही उन्माद में, ये धरती आज है, हो चली है आंख, बनके अब आवाज है, कारवों पे कारवा कर रहा आगाज है ।

गुब्बारे

देख गुब्बारे वाले को जब बच्चे ने आवाज़ लगाई दिला दो एक गुब्बारा मुझको माँ से अपनी इच्छा जताई। देखो न माँ कितने प्यारे धूप…

दुनिया

कैसी ये दुनिया बनाई प्रभु ने सब वक़्त के साथ जिए जा रहे हैं ऊँगली पकड़ के चलना सीख कर कन्धों के सहारे चले जा…

जवाब…

जवाब… बस देती ही रही हूं जवाब… घर जाने से लेकर घर आने का जवाब… खाने से लेकर खाना बनाने का जवाब… बस देती ही…

गुस्ताखियाँ

यूं तो अरमानों के इरादे भी परेशान हैं, पानी की बूँदें भी आँखों की बारिश से हैरान हैं| पर जनाब हमारी गुस्ताखियों की भी हद…

“माँ”

“माँ” कितनी बार धुप मे खुन को जलाई तुने “माँ” मेरी लिए चंद रोटियाँ लाने मे। कितनी बार तुने खुशी बेच ली “माँ” तुने मुझे…

कामकाजी महिला

सुबह के चार जैसे ही बजते हैं आँखें उसकी खुल जाती हैं इधर से उधर,उधर से इधर साफ़ सफाई से शुरुआत है करती खाना बना…

आई

आई तुझ्यासाठी मी काय लिहू, आणि किती लिहू, तुझ्या महितीसाठी शब्दच अपुरे आहेत, तुझ्यासमोर सगळे जगच फिके आहे।। आई तुझ्या बद्दल बोलायला मला शब्दच उरणार…

मिली मुझे खुशियां

मिली मुझे खुशियाँ (“रहस्य:) देवरिया मेरे होठों कि हॅशी तेरे आनें से है, मिली मुझे खुशीयाॅ तेरे बहाने से है,, “””””””” मेरे लबों कि मुस्कुराने…

जीतना

मुझको मुझसे जीत कर, खुशियाँ मना रहे थे वो| शायद हारकर जीतने और जीत कर हारने के , उस एहसास से वाकिफ़ न थे वो|

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