उसे ही शिकायत करते देखा

September 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसके सहारे जग को देखा
उसे ही शिकायत करते देखा

आशाओं के तार लगाकर
असली नकली प्यार दिखाकर
अपने इतने पास बुलाकर
न समझाना समझाते देखा

नेह के दावे इतने सारे
सामने आकर पांव पसारे
बीते पल के सहारे को
नये पलों में किनारे देखा

हर दिन वही गलती दुहराते
निर्जीवों को गले लगाते
सजीव सहारों पे झल्लाते
करनी पर पछताते देखा

लहरों का लम्बा साथ मिला
साथ का आभास जगा
भरोसा था जिनके कंधों पर
पर हाथ सिसकते देखा

जीवन है इक अनजान छांव
सपना ही है सबका गांव
छोड़ना है जिन छांव को भी
उन्हें कसके पकड़ते देखा

टूटी है किसी की आस
आते बनके जिनकी प्यास
अरमान बिखरने के कारण ही
हर सपने को बिखरते देखा

जिसके सहारे जग को देखा
उसे ही शिकायत करते देखा

सोने से कितना प्यार तुझे

September 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोने को नित धारण कर
शीशमहल में सोने वाली
सोने से कितना प्यार तुझे

शिकायत मुझसे है लेकिन
इज़हार प्यार का करती हो
कैसा मुझसे है तकरार तुझे

भोर के जैसी निर्मल काया
स्वर्णमयी रंग जिसपे छाया
सुबह से क्यूं इनकार तुझे

सजना है प्रकृति के साथ
चलना है जीवन भर साथ
करना सबसे मधुर ब्यवहार तुझे

इक घर की बगिया सजाकर
स्वघर को भी महकाया तूने
हर जन का है आभार तुझे

एक थी प्यारी निशा

August 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक थी प्यारी निशा
कल्पना की तरह
नव आकर्षण लिए
सबकी ख़ुशी के लिए

उम्मीद भी न थी
साथ होगी कभी
देर से मिली सही
आई बनकर खुशी

हंसी मनमोहक सी
सबकी ही प्रिय बनी
उम्मीद सबकी ही थी
आई क्यूं ऐसी घड़ी

कई उड़ानें चढ़नी थी
मां की हिम्मत बंधी थी
पापा का पूरा संसार
आस पड़ोस की रौनक थी

संतान जिसे सभी चाहे
मुश्किल कहीं दिख पाए
चेहरा जो सबको भाए
अचानक क्यूं गुम जाये

जिम्मेदारी में आलस न करो

August 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी सुरक्षा खुद करो
औरों के भरोसे मत रहो
मदद नमक की तरह ही लो
जिम्मेदारी में आलस न करो

सुरक्षा कर्मी लगाकर अगर निश्चिंत हो होते हो
इंदिरा की तरह कीमती जिंदगी खोते हो…

विदेशी सेना के सहारे में
अगर देश की सेना ने आराम किया
वही हश्र होता है जो
देश अफगानिस्तान का हुआ

आश्रित हो जाना पूरी तरह इक कमजोरी है
कमजोरों की जिंदगी तो
सदा से दूभर ही है…

इक शस्त्रधारी से जहां
सैकड़ों डरपोक डर जाते हैं
सजग सशक्त निडर तो
अस्त्रधारी को भी हराते हैं…

अपनी सुरक्षा खुद करो
औरों के भरोसे मत रहो
मदद नमक की तरह ही लो
जिम्मेदारी में आलस न करो

इंसान नाम के रह जाते हैं

August 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्हें कुछ न है पता
किसी खाश चीज का
फिर भी वो बताते हैं
समझाना दिखाते हैं

दया का पात्र बनते हैं
या फिर गुस्सा दिलाते हैं
माखौल खुद का उड़ाते ही
औरों का दिल दुखाते हैं

कुर्सी पर पड़े रहकर
जनता का लाखों डकर जाते हैं
इक आह तक भरते नहीं
संयत्र लूटते जाते हैं

चोरी पकड़ी जाती है तब
सरकार पर चिल्लाते हैं
बाबू बन जाते हैं लेकिन
इंसान नाम के रह जाते हैं

खौफ

August 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अन्याय हुआ था अगर
इंसाफ की दरकार थी
परिवार ही गायब हुआ
खौफ बदनामी की थी

ऐसे भेड़ियों को तब
किसने सिंघासन दिया
न्याय की अ ब स भी
जिसे नहीं मालूम थी

सर्वदा जिसने हमेशा
दर्द का वृक्षारोपण किया
आज दर दर भटक रहें
दोष पे न कभी निगाह की

क्षमा दया की धरती को
लालचियों ने दूषित किया
हमारे आदर्श वो राम थे
मानव चरित्र की वरदान दी

गुरुदेव तुम्हारा अभिनन्दन

August 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुरुदेव तुम्हारा अभिनन्दन
भारती के अमित चन्दन
तुमसे है सुगन्धित शांतिवन
युवा पढ़कर पाते पुनर्जीवन

रचनाएं जागरण की जान बनी
भारत जन का स्वाभिमान बनी
नोबल का इसे सम्मान मिला
अन्य देशों का भी इमान बनी

अध्ययन की अदभुत जो नींब पड़ी
हर जन मन में बसी तेरी आकृति
शांतिनिकेतन सरिस अनुपम कृति
दिलाती रहेगी सदा तुम्हारी स्मृति

पप्पू ही पल रहे हैं

August 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या सोंचकर चुना था
ये क्या कर रहें हैं
भेंड़ बनके वोट मांगने वाले
भेड़िये निकल रहे हैं

अरबों किया इकट्ठा पर
पप्पू ही पल रहें हैं
कुत्तों के घर में कैसे
लोमड़ी पल रहें हैं

रक्षक बने फिरते हैं
देश को निगल रहें हैं
आसमान पे थूकने वाले
खाक सिर धर फिर रहें हैं

है एहसास मुझे

July 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

माशूम ज़िंदगी के तुम्ही तो सहारे थे
भोले चंचल मन को कितने प्यारे थे
नयनो के दर्पण में अक्स उभरता था
मुझे और खिलोने की नहीं जरुरत थी
कभी न तुमसे रहा था तकरार मुझे

ज़िंदगी क्षणभंगुर सबका ही साथ छूट जाता है
मन को तसल्ली है तेरा मेरा अटूट नाता है
बहुत रोया था अचानक तेरे ओझल हो जाने से
काला बादल मन के आसमा पर छा जाता था
अब तो दूर रहकर भी न लगती हो दूर मुझे —

आस बस यह की जन्म बाद भी तेरा मेरा साथ रहे
जिस तरह मेरे पीछे आयी चाहत बरक़रार रहे
मैं तो न कभी अपनी चाहतों के पीछे भागा हूँ
हाँ मेरे चाहने वाले को मेरा साथ रहे
ईश तो साथ है बरसात का है एहसास मुझे —

साजिश

July 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार की जमीं साजिश के तहत तैयार की गयी
ऊर्जा से भरे भारती संतान को बीमार कर गयी

एक उम्र गुजरी अपनों से सीख कर
उनकी आदतों को खुद में कैद कर
पास रहने का बहुत असर होता है
साथ रहने से बहुत फ़र्क पड़ता है
बड़ों की आदतें हमें शिकार कर गयी
स्वस्थ बीज पनपे न बीमार कर गयी —

सुर संगीत के यहां सब दीवाने हैं
गाये तराने ही उन्हें दुहराये जाने है
उदासी के गीत सुरीले बनाये गये
नौजवान मन को बीमार बनाते गये
यूवा ही है किसी भी देश की शक्ति
देश की शक्ति धुनों की भेंट चढ़ गयी —

मिठाइयां सभी को कितनी है भाती
हर त्यौहार उससे सजकर है आती
किसने इसमें मिलावट की जहर डाली
त्यौहार के बाद अस्पताल सज जाती
सामूहिक बस्तुएं भी दुषित हो गयी
स्वदेशी ताकत पर असर कर गयी —

कर रहा दुश्मन इकट्ठा हमारी कमजोरी
हमारी साफ चीजों में मिलावट है डाली
आओ सब पहचाने अपनी कमजोरियां
जागरुकता फैलायें बनाकर के टोलियां
मेहनत किसी की नित सुधार कर गयी
देश को अग्रिम पंक्ति में शुमार कर गयी —

आकलन

July 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहना है बहुत कुछ
शब्द कम पड़ जाते
अफ़सोस सदा रहता है
काश पूरा कह पाते

उनको कम कहना था
अधिक शब्दों को गाते
बात कितनी छोटी थी
शब्दों की माला बनाते

असमंजस में कितने ही
दोस्त हमेशा रह जाते
कितना सुनना था उनसे
उतना वो काश बोल पाते

कुछ के भंडार भरे है
खाली करते चले जाते
सभी सुनकर ऊब चुके है
उन्हें देखते ही छुप जाते

आकलन कहने सुनने की
सही सही न कर पाते
कितने ही प्यारे चहेते
उबासी लेते पर सो न पाते

अपेक्षा

July 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिरोध के फूल खिलें हैं
माशूम की निगाहों में
मजे करने की चाहत
दफन हुई कैदखाने में

बच्चे का अधिकार दया
बंद जनक के खाने में
ऊंची उड़ान की चाहत
गुम क्यूं हुई मयखाने में

आश का जब सांस घुटे
गुस्सा तो थोड़ा आयेगा
इससे न हल हुआ कभी
तन मन को ब्यर्थ जलायेगा

संतान पर आई मुसीबत
कौओं की पूजा खूब हुई
दो दिन में जो रिहा होते
उनपे जालसाजी खूब हुई

यूवा तो अल्हड़पन में
गलतियां नित करेंगे ही
इनको नाहक परेशान कर
तुम्हारा घर संवरेगा नहीं

अपेक्षा पूरी करेगा जो
बड़ा वही कहलायेगा
जिंदगी भर हसरत रही
पाया हुआ कब लुटायेगा

निवारण

July 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उम्र का फासला अलग
जरूरत से ज्यादा आशा
सदस्यों की अपूर्व ब्यस्तता
बढ़ती शिकायत का है कारण
शांत मन ही कर सकता निवारण

सब सभी से समझते भी नहीं
सब को हम समझाते भी नहीं
इक धारणा भी बना रखी है सबने
वहीं जाके होगा समस्या का निराकरण

शब्द एक ही अलग-अलग लोग बोलते हैं
एक को सुनना चाहते ही नहीं
इस लिए समझ भी नहीं पाते हैं
वरणा समस्या की जगह ही हल पाते हैं

हम क्यूं न समझ पाते हैं

July 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाब जो देखें हैं
उनका टूटना बिखरना
बहन के लिए मुश्किल है
भाई की शिकायत सुनना
भाई कहां गलतियों से
बाज कभी आते हैं

जो आशाएं रखी है
अपनी बहन बेटी से
वो सम्मान औरों को
क्यूं दे नहीं पाते हैं
हम स्वयं की ही चिंता में
कितने निष्ठुर हो जाते हैं

सौ दोस्त थे उनके
सौ काम बनाया था
कद ऊंट सा था लेकिन
बच्चे ही थे अभी शायद
गलतियां बच्चों से होती
हम क्यूं न समझ पाते हैं

जिन्होंने सजा दी है
फ़रिश्ते वो होंगे शायद
इन बच्चों के जैसे
उनके बच्चे न होंगे शायद
इतनी निष्ठुरता धारण कर
कैसे बड़े कहलाते है

उस मां पे क्या बीती
संतान जिसका विक्षत हो
उस बहन की हालत क्या
सपना जिसका टूटा हो
औरों के दर्द न पीते हैं
कैसे इंसान कहलाते है

गलतियां हर इंसान से
हर रोज ही होती है
सुधार करते हुए जिंदगी
आगे को बढ़ती है
दूसरों को सजा देने वाले
यूं भगवान कैसे बनते हैं

खैर कब तक मनायेगा

July 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पाक नाम रखने से कोई
पाक नहीं बन जाता
आदत बिगड़ चुकी जिसकी
सुधार मुश्किल से आता

नादानियां इतनी कि उन्होंने
गुस्ताखियों का उन्हें अंदाजा भी नहीं
उस जहाँ में क्यूँ आखिर
कोई इंसान जन्म लेता नहीं

खिलौनों की तरह जो
जिंदगी से खेलते हैं
रहम का बदला हमेशा
बेरहम बन लेते हैं

कब तलक कोई इन्हें
सही राह रोज दिखलायेगा
अंत आ चुका जिसका
खैर कब तक मनायेगा

पांच बेटे मां को खिला न सके

June 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक मां ने पांच बेटों को पाला
पांच बेटे मां को खिला न सके
कितनी बदकिस्मत होगी वो मां
जिसपे मिटी साथ निभा न सके

बेटे के लिए कितने चक्कर लगाये
मंदिर में निशदिन प्रसाद चढ़ाया
मस्जिद तक में भी चादर बांटे
बुढ़ापे का जहर किस सहारे काटे

बेटे होते हैं निरंकुश ही अगर ऐसे
कंस रावण को पास रखें भी कैसे
इनको अब पराया करना ही ठीक
बेटियों को अपनाना है चाहे जैसे

अपनों के न हुए दूसरों के क्या होंगे
इन अजूबों से संग्रहालय भी न सजेंगे
इनके बच्चे भी तो होंगे इनके ही वैसे
बेटी इन को वरण करेगी भी तो कैसे

ये कैसा दौर है

June 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये कैसा दौर है जहाँ
विश्वास का भी कारोवार है
हैसियत का पता नहीं पर
पहुंचने पर बनता कर्जदार है

एक समय था सबसे ज्यादा भरोसा
डॉक्टर पर ही होता था
भगवान से भी कहीं
पहले स्थान उसका होता था

अब तो वो ही सबसे ज्यादा
लोगों को क़तर रहे
हर दिन ही इंसान के निगाहों में
शूल से हैं चुभ रहे

उम्र सब की लगभग इतनी
फिर भी इतना लालच हैं क्यों
इंसान अपनी आदतों का
ऐसे शिकार हुआ हैं क्यों

पैसे की भूख ऐसी इतनी
किसी भी युग में न थी
व्यवसाय के लिए भी
उतनी आवश्यक वस्तु न थी

मुफ्त न मिले सब कुछ
श्रम तो लगता ही हैं
पर किसी वस्तु की कीमत
का कोई सीमा रहता हैं

जिंदगी ने फिर रौशनी दी है

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बचपन की नादानियां
नसीब में अब हैं कहां
वो मस्ती थी तभी तक
दोस्त थे जब संग वहां

कैसे तुम्हें बताऊं मेरे यार
कितनी खुशी तूने मुझे दी है
बुझते हुए चिराग को जैसे
जिंदगी ने फिर रौशनी दी है

कितनी मेहनत की थी तुमने
मुझसे जीतने की यार तब
जीतने का जुनून था या रब
मुझे सवार हुआ कैसे जब

अब अगर तूं खेले मुझसे
जीत न कभी पाऊंगा मैं
अपने अजीज को ही हारता
कैसे ऐसे देख पाऊंगा मैं

रूबरू

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कष्टों में कोई कमी न हो मेरे प्रभु
पर उन्हें सहने की क्षमता भी तूं
जब भी मुसीबतों से दबा मैं कभी
अवाक था मुझे संभाले हुए था तूं

नफरत पाली मैंने किसी के लिए
बेबस हुआ है मेरे आगे सदा ही तूं
खुशी मिली मुझे तपती दुपहरी में
मेरे कष्टों को सदा झेल रहा था तूं

अब मुझे शिकायत नहीं किसी से है
अब न मैं अकेले कहीं पल भर भी
हर कदम सांसों का पहरा चलता है
हर होश वाले क्षणों में हूं तुझसे रूबरू

मुस्कान

May 27, 2021 in शेर-ओ-शायरी

उफ़ ये बेरूखी वो तो इक झलक के प्यासे हैं
किस्मत से कमज़ोर हैं मुस्कान भी न पा सके

खेल

May 27, 2021 in शेर-ओ-शायरी

जिंदगी इक खेल है कोई पास कोई फेल है
शिकायत न रहे किसी से सभी से मेरा मेल है

Trust

May 27, 2021 in English Poetry

Trust is an ointment for recreation of happiness.

Trust

May 27, 2021 in English Poetry

Trust is an ointment for recreation of happiness.

तारीफ

May 27, 2021 in शेर-ओ-शायरी

उनकी तारीफ में कोई कैसे कुछ लिखे
नजरों को उनसे हटना ही जब मंजूर नहीं

बुद्ध जयंती हर वर्ष मनाते हैं

May 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बुद्धू जिन्हें कहती थी दुनियां
आश्चर्य है बाद में उन्हें पूजते हैं
दुनियां को छोड़ भागे जंगलों में
ऐसे भगोड़ों को सुनते ही नहीं
अनगिनत ही लोग पूजते हैं
बुद्ध जयंती हर वर्ष मनाते हैं
बुद्धुओं से दुनियां को सजाते हैं
प्रथाएं शुरू हुई जाने क्यूं कैसे
बुद्धत्व तक कोई कहां पहुंच पाते हैं

किस पर फिदा हुआ है

May 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

है पता मुझे अब
उनकी चाहतों का
अहसान की सूची में
इक नाम बढ़ गया है

पता चला है मुझको
देर से सही लेकिन
अपनी नज़र में मेरी
भरोसा बढ़ गया है

प्यार हुआ शादी हुई
मशहूर लब्ज हैं लेकिन
शादी के बाद प्यार हो
नशा सा चढ़ गया है

देखा है प्यार खोकर
टूटते हुए सब को या रब
हारकर भी जीतने का
रिवाज बिल्कुल नया नया है

उम्र बिता दी सारी
भरोसा जीतने ही में
प्यार पूछता है अब मुझसे
किस पर फिदा हुआ है

दिल के करीब है जो
जीवन का है सहकारी
कैसे बताऊं उसको मैं
बस तेरा ही नशा चढ़ा है

मादक नशा

May 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये भी कैसा चाहत का मादक नशा
जिसमें सब ही लोग उलझे पड़े हैं।
अनुभवी सीढ़ियां इतनी पास खड़ी
पर कतराते उससे कितनी दूर पड़े हैं

आराम मनोरंजन के गुलाम बने हैं
घर गोदाम के जैसे चीजों से भरे हैं
प्रकृति नियमों से कोशों दूर खड़े हैं
जैसे जिंदगी के पेड़ उन्हीं से हरें हैं

शिक्षा के लिए उनके पीछे पड़े हैं
जो खुद ही अस्त व्यस्त बिगड़े हैं
पास में ही है शिक्षा का समंदर
अभिमान की चादर में अकड़े हैं

जीवन ही है

May 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जग गया हूं प्रभु फिर एक बार
शुक्रिया धन्यवाद कोटि-कोटि बार

हर दिवस का जब होता अवसान
अंदेशा रहता होगा कि न होगा बिहान
तुझ पर भरोसा है भारी होगा कल्याण
सांसों की पुंजी का कहां किसी को ध्यान
पूरी दुनिया दो हिस्सों में है विभक्त
कोविड ननकोविड, न कोई है सशक्त
डर-डर के कर रहे सभी श्रमदान
आदतन किये हैं कैद संकट में है जान
कुछ भुक्तभोगी मूक दर्शक है बने
पर के खातिर अपना प्राण क्यूं तजें
इक दृश्य नजर आया-क्या है प्रलय?
चेता न संसार इसी तरह होगा विलय
कोयल की कूक कल भी थी आगे भी रहेगी
डर है मानव की गिनती विलुप्त प्रजातियों में होगी
कुछ न घटेगा विश्व से शोर हटेगा
संसार में अत्यधिक फैला प्रदूषण घटेगा
प्रकृति फिर से नई नूतन सजेगी
हरियाली की छटा विश्वब्यापि लगेगी
फैलाव की इक सीमा फिर सिकुड़न ही है
इसी यात्रा का नाम शायद जीवन ही है

मातृदिवस

May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मां तूं है ममता का सागर
करुणामयि अमृत की गागर
श्रृजनता अतुल्य अपरम्पार
तेरा ऋणि ये सारा संसार

सुमन सी प्रफुल्लित चंचल
सन्मिष्ठा सी मधुर मनमीत
सरिता सी जीवनधार लिए
स्वाति सी सूझबूझ व प्रीत

द्वारिका सा सुंदर हर सदन
राजनीति बहे हर पल हर क्षण
माधव से सुंदर है हर उपवन
मां ही हर शाला का उत्तम धन

सांभवी से ही सरल है सबके काम
वैश्नवी की तपस्या है मन का आराम
शेखर की शोभा मां का आशीर्वाद
मां तूं हर मुश्किल का हल निर्विवाद

मां से हर घर में उमंग उत्सव
मां ही तो हर घर का वैभव
मां में राजीव सा सुगंध शैशव
मां में तेरा रूप ही है केशव

मातृदिवस सबसे पवित्र उत्सव
सारे विश्व का ही हर्षोल्लास
माता के गुण अपना फले फूले
सब मिलकर आओ करें प्रयास

हे हनुमान

April 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मंगल मूर्ति हे हनुमान
बारम्बार तुम्हें प्रणाम
तुझसे संभव सारे काम
कष्ट हटे मन को आराम

सेवा का संचार तुम्हीं हो
जग का सद्व्यवहार तुम्हीं हो
श्रृजन का आधार तुम्हीं हो
हर जन का आभार तुम्हीं हो

संभव सब जब है तेरा सहारा
मेरा हितैषी तूं ही मेरा सहारा
जपता रहूं तुम्हें हर सुबह हर शाम
इतना रहे प्रभु बस हमपे ध्यान

तैयार खड़े हैं

April 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तोहमत लगाने की आदत
कब की छूट चुकी है
मैं गुलाम ही सही मुझे
सबकी आजादी की पड़ी है
मुक्त होती है रुह मरकर ही
मुझे मुक्त होना है जीते जी ही
इक बीज किसी फल का नहीं
कहीं यूं ही फेंकता हूं मैं कहीं
जमीन अपनी हो या परायी
हरियाली कि उम्मीद न छोड़ता हूं कहीं
पर्यावरण में सुधार के लिए ही
शायद मैं भविष्य में अगर जिंदा हूं
जिंदगी में बीत चुकी है जो गलतियां
उसके लिए तब तभी ही शर्मिंदा हूं
हर रोज बदल जाते हैं इंसान यहां
क्यूं पुरानी गलतियों के लिए कोसते हैं
बीते हुए कर्मों की सजा भोग रहें हैं
वर्तमान के कर्मों के लिए तैयार खड़े हैं

ये धुंआ धुंआ सा

April 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये धुंआ धुंआ सा जल रहा है क्या?
कहीं कोई हो रहा बेखबर सा क्या?

सब में प्रभु पहचान
कितना भ्रम है लोगों को
सब उसे देख जलते है
उसे आगे बढ़ते हुए देख
उसकी ही शिकायत करते हैं
इतना समय अब भी शायद
उसके पास नहीं है क्या?

ये धुंआ धुंआ सा जल रहा है क्या?
कहीं कोई हो रहा बेखबर सा क्या?

निंदकों को सदा रखें पास
बात अब झूठ ही लगती है
तारीफ की आदत सी पड़ी है
बड़ाई ही सुन बड़प्पन भूले हैं
सच के कांटे शूल से चुभे हैं
बड़ाई इक बीमारी नहीं तो क्या—

सब में प्रभु पहचान

April 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे

कोई बड़ा न कोई छोटा
हर चेहरे पे झूठा मुखौटा
कहने को ही मन आँखे अपनी
कान भी पर दोषों का श्रोता
कहने को अपने सब झूठे धंधे —

सब में वही नित नृत्य है करता
सबकी समझ को रोज ही गढ्ता
अपने सोंच के हम हैं गुलाम
सब में वही थिरकता रहता
प्रार्थना से धो निज मन को मंदे—

ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे

सब में प्रभु पहचान

April 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे

कोई बड़ा न कोई छोटा
हर चेहरे पे झूठा मुखौटा
कहने को ही मन आँखे अपनी
कान भी पर दोषों का श्रोता
कहने को अपने सब झूठे धंधे —

सब में वही नित नृत्य है करता
सबकी समझ को रोज ही गढ्ता
अपने सोंच के हम हैं गुलाम
सब में वही थिरकता रहता
प्रार्थना से धो निज मन को मंदे—

ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे

कितने याद आते हैं- दोस्त

April 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बचपन से ही न जाने कितने दोस्त बनाये
हंसी ख़ुशी उनके संग ज़िंदगी के पल ये विताये
जगह बदल जाने पर वे कितने याद आते हैं
मायुशियों के पल उनकी यादों से खाश होते हैं
नयी जगह में नए दोस्त ज़िंदगी में आते हैं
इस तरह पुराने दोस्तों को हम भूल जाते हैं
कुछ खाश जिनसे जुड़ जाता है आत्मिक रिश्ता
दिल के कोने में जो जगह पा लेते हैं गहरा
तनाव ज़िंदगी की जो अपने साथ से हर ले
मझदार डूबते को जो किनारे पर कर दे
बीते पलों के साथ वो और याद आते हैं
अच्छाई किसी की कहाँ कोई भी कभी भूल पाते हैं

हर दिन हम अच्छे होते जायेंगे

April 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर दिन हम अच्छे होते जायेंगे
बहुत लगाए बाड़ काटों के
अब फूल से कोमल होते जायेंगे

गलत स्पर्धा में हमें नहीं पड़ना
मुरझाये चेहरे अब नहीं गढ़ना
हर चेहरे को सच्ची हंसी से सजायेंगे …

औरों की चीजें बहुत ही भाई
पर मेहनत से घर खूब सजाई
निज मेहनत से हर घर को मह्कायेंगे …

आलसी बन अब हमें नहीं जीना
औरों की गलतियां नहीं सीना
हरी भरी वही धरा फिर वापस लाएंगे …

हर दिन हम अच्छे होते जायेंगे
बहुत लगाए बाड़ काटों के
अब फूल से कोमल होते जायेंगे

सच कैसी मुश्किल की घडी है

April 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसने हमें सम्हाला कितने प्यार से पाला
आज उसे सम्हालने की पड़ी है
सच कैसी मुश्किल की घडी है

माँ जो हमपे गर्व थी सदा ही करती
संकट में आज है हमारे कारण वो धरती
ऐसा भी कहीं होता है कैसी आफत आ पड़ी है …

इक दूजे से प्यार का रिस्ता रहा है हमारा
मुश्किलों में हमें सदा मिला है सहारा
हरकतों से हमारे कितनी सहमी वो डरी है …

वसुंधरा का सहारा हमें ही होना है
पाकर सुनहरा साथ इतनी जल्दी नहीं खोना है
सुरक्षा की खातिर अब जोड़ना हर कड़ी है …

अपनी सारी गलतियों को हम जल्द सुधारेंगे
इस पवित्र रिश्ते को पावन फिर से बनाएंगे
बेकार चीजों की अब जरुरत हमें नहीं है …

जिसके कारन बीता हर दिन दिवश सुनहरा
जिनके रंगो से खिलकर प्यार होता गया गहरा
उसके सुरक्षा के खातिर दिवश मनानी पड़ी है …

तेरे जन्मदिन से हो फिर नया विहान

April 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मर्यादा की पराकाष्ठा सद्गुणों के धाम
हे पुरुषोत्तम तुम्हें बारम्बार प्रणाम

अवतार पूर्व मनुष्यता थी विकल
ज्ञानी ध्यानी सारे संत थे विफल
अत्याचार मुक्ति की न थी युक्ति
विलुप्ति की ओर अग्रसर थी भक्ति
अवतरण से तेरे कष्ट को मिला विश्राम—

अज्ञात थे पथ जिसपे मनुष्यता बढ़े
भयग्रस्त से सब कब किस ओर चढ़े
रावण से थे चहुओर कोने कोने भरे
कैसे सब की पीड़ा का हो अवसान—

तेरे आने से सबको मिला आराम
सबके ही कष्ट दुख मिटे अभिराम
उत्सव की हुई हर पल शुरुआत
सुखद कथाओं की मिली अचल सौगात
देवताओं का भी विचलित मन हुआ शांत

तेरे नाम की महिमा का है अब सहारा
तुम बिन हे शाश्वत कहां कोई कहीं प्यारा
फिर से मानवता हो रही है व्यथित
सब हो रहे हैं क़ैद कहां कोई पथिक
तेरे जन्मदिन से हो फिर नया विहान

पतियों की हालत पत्ति की तरह

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पतियों की हालत पत्ति की तरह
श्रम कर कर गिरे पत्ति की तरह

कहने को ही घर का मालिक है
दिन श्रमरत रहा रात चौकीदारी है
बीबी की‌ शादी तो हुई शीशे से
पति से नोंक झोंक की रिश्तेदारी है
दिल लाख ललचे खुशी के लिये
पड़ा विस्तर पे चुसे गन्ने की तरह

कहने को समाज है मर्दों का
मुर्दों जैसी घर में स्वागत है
पत्नी नौकरानी को बच्चे थमा
विस्तर पर टी वी की रानी है
खा पी मौज ले जो बच जाता
परस देती पति आगे जूठन की तरह

क्या ‌सच में कभी इनकी हुकूमत थी
आज तो तेल निकले बादाम सी हालत है
शायद रहम हो जाये कभी औफिस में
घर में ‌इनकी कहां ऐसी किस्मत है
उमर कैद की सजा काट रहे
निरपराध मुजरिमों की तरह

पतियों की हालत पत्ति की तरह
श्रम कर कर गिरे पत्ति की तरह

पृथ्वी दिवस’ (22 अप्रैल)

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पृथ्वी ही ग्रह जहां जीवन
नदी झरने पहाड़ वाले वन
जल वायु मिट्टी जैसे संसाधन
अत्यधिक इनका न हो दोहन

पृथ्वी दिवस जैसे आयोजन
सजग करते हैं हमें सज्जन
आलस त्याग आओ हर जन
धरती का कण कण हो वन

मां के समतुल्य है ये धरती
कितने अत्याचार हर रोज सहती
वृक्ष कटाई पर लगे प्रतिबंध
हरियाली युक्त हो देश बने तपोवन

वृक्षारोपण का रोज हो आयोजन
संयुक्त प्रयासों से सुधरेगा पर्यावरण
संरक्षित रखना इसे हमारा कर्त्तव्य
सजगता से बनता जीवन है स्वर्ग

प्यारे उसी के हो लिये

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बच्चों की आदत रही
खाकर भूल जाने की
फल उठा बस ले चले
चाहत मरी ठिकाने की

किसमें गलतियां ढूंढे हम
किससे अब शिकायत करें
दोष देगा जमाना दोनों को
दरार है जिसके तहखाने में

संस्कार जिन ग्रंथों में है
उसकी सफाई भूल गये
बाहर झाड़ू ललगाई अक्सर
घर के कोने मैले रह गये

समय जिन्हें देना था
उसे उससे चुराते चले गये
जिसने उसे ये धन दिया
प्यारे उसी के हो लिये

तुझ सा ही अकेले

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी चाहतों के लो आज
वो फिर गुलाम हो गये
कैसी होती थी सुबहें
अब कैसे शाम हो गये
छुपते अपने ही घर जो
दोस्तों के आने जाने पर
उन्ही दोस्तों की चाह में
जहां तक सुनसान हो गये
किनसे है हिकारत हमें
और क्यों हो शिकायत कोई
गलतियां दुहराने से ही तो
फलहीन कई बगान हो गये
अब तो रहना होगा सबको
तुझ सा ही अकेले राजीव
गीली मिट्टी की महक वाले भी
कीच के लिए ललायमान रह गये

उधार की जिंदगी

April 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुझसे है नाता
विश्वास न आता
इक पास आता
दूजा दूर जाता
दूर रहकर भी
कहां चैन आता
शादी लड्डु जैसे
खाकर है पछताता
अब ताकता राह
नये पंछियों की
जो देख सुनकर
भी न सीख पाता
परानी राहों पर
पैर को जमाता
उधार की जिंदगी
उधार में गंवाता
कहां सीखता कोई
सब सिखा जाता
भ्रम‌ भरी दुनियां
किसे सीखना आता

कश्मकश

April 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

समझाना चाहते थे हम उनको क्या
और वे समझे हैं देख लो जी क्या
ये देख के लगता है यूं कश्मकश में
चुप रहना ही बेहतर है इस जगत में

शब्द का उत्तर शब्द ही‌ तो होता है
भावना विलग हो तो कोई क्या करें
प्यार की शुरुआत संवाद से होता है
संवाद ही विवाद हो तो कोई क्या करें

सत्य का प्रचलन है पूरे विश्व में आखिर
शायद न रहा हो किसी आंगन में प्राचिर
सत्य से परेशान हैं लगभग ही आदमी
सत्य खुद को समझ लें तो कोई क्या करे

सुधार की दरकार

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर्म के लिए कहां कोई करार
बैठे हैं बेकार आलस की कतार
बेजार की पगार सरकार की बुखार
तंत्र में अरसे से सुधार की दरकार
सुरक्षा की दीवार में है दरार
अधिकारी दे रहे भ्रष्टों को दुलार
देश की धार हो रही जार जार
श्रमिकों का हो रहा जीना दुश्वार
खाश पदों पर काबिज हैं गंवार
बोझ के डर से कब से हैं फरार
कागज चुरा बने काम के शाह
हीरा कब कहे मैं हूं बादशाह
सरकार के संस्कार में रविवार
कैसे मिटेगा वतन से भ्रष्टाचार

तलाश तेरी है

April 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तलाश तेरी है
मेरा पता चले

ये नाम मेरा
क्यूं अनजान लगे
ये काम मेरा
इक बोझसा लगे

साथी जो बने
टिक ना सके
चाहा था जिन्हें
कबके ओझल हुए

दिन हो एकसा
यही आस लिए
बीती जा रही
सांस बिन रुके

नज़रों पे कब्जा
कहां हुआ कभी
शिकायत जब हुई
अपनी थी कमी

जुंबा है बेलगाम
नज़रें खुली अपलक
अपनी ही इन्द्रियां
गैर की झलक

देश के नुक़सान में जो श्रमदान देता है

April 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पाकिस्तान दूसरों की बरबादी चाहते
खुद बरबाद हो गया
उसके राह पर चलने वाले का
यही अंजाम होता है
अच्छाई फैला कर अमर हो गया जो
अदृश्य रहकर भी भलाई का पैगाम देता है
देश की रक्षा करने वाले से सबक सीख ले
जो अपनों की खातिर हंसकर जान देता है
उन काकरोचों को मारना मकसद है अब
देश के नुक़सान में जो श्रमदान देता है

धरा के सच्चे हीरे हैं

April 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आशा भी न थी कि मिल पायेंगे
बचपन के कई साल गुजारे साथ
दशकों तक सिर्फ याद बन जायेंगे
मीठे ख्वाब फिर कहीं गुम जाएगें

बहस में पड़ने वाले कई होंगे
सामंजस्य बिठाने वाले थोड़े हैं
मतभेद को जो मिटा सके
वो ही धरा के सच्चे हीरे हैं

सुख दुख के साथी हम सब
किसी के अधिकार से दूर रहें
बड़ी मुश्किल से मिलें है यारों
आपसी तूं तूं मैं मैं से दूर रहें

सभी मुसाफिर हैं यहां जगत में
शदियों से लगा आना जाना हैं
खेल खिलौने धन थे पहले से ही
बस मेरा तेरा साथ ही पुराना है

,इतना मजबूर कैसे

March 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना मजबूर सा कोई हो तो कैसे
आईने शक्ल बदले हर रोज जैसे
शायद उम्र का नया सा पड़ाव हो
या फिर बीते पल का हिसाब हो
नहीं तो राजनीति का झुकाव हो
वरना दमदार इंसान चुप हो ऐसे
इतना मजबूर सा कोई हो तो कैसे
आईने शक्ल बदले हर रोज जैसे
कई आशाएं कुछ पूरी ज्यादा धूमिल
उनके अपने कितने पराये व अलग
दोस्त ऐसे तो गददार किसे कहते हैं
रक्षक जिसे बनाये भक्षक बनते कैसे
इतना मजबूर सा कोई हो तो कैसे
आईने शक्ल बदले हर रोज जैसे
दोस्त सुस्त तो विकाश हो कैसे
सेवक बनकर भी अकर्मण्य भैंसे
सबका साथ हो न हो पर ऐ मालिक
ये तो ६० साल चिपके रहेंगे ऐसे
इतना मजबूर सा कोई हो तो कैसे
आईने शक्ल बदले हर रोज जैसे

धर्म आंतरिक जागृति है

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धर्म आंतरिक जागृति है
संवेदना का अहसास है
अंतर्मन अगर साफ है
मजहब हमेशा पास है

शांति संदेश के लिए समूह
प्रेम का एकल स्वतंत्र विचार है
जीवन सरल सीमित सबका
भंडारण के लिए आचार है

ईश्वर से पा पा जीवन भर
देना जिसको आ जाता है
जीना उसी का सार्थक हुआ
जी ना अपनों से चुराता है

धर्म श्रेष्ठ जो प्रेम सिखाए
सहयोग राह पर हमें चलाए
संगठन का नित पाठ पढ़ाए
सहृदय बना देश रक्षा कराये

सर्वहित के लिए हमे जोड़े
कर्मठ बना पहल को मोड़ें
सत्यपथ पर सदा सुदृढ़ रखे
संस्कृति के लिए हमें परखे

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