खैर कब तक मनायेगा
पाक नाम रखने से कोई
पाक नहीं बन जाता
आदत बिगड़ चुकी जिसकी
सुधार मुश्किल से आता
नादानियां इतनी कि उन्होंने
गुस्ताखियों का उन्हें अंदाजा भी नहीं
उस जहाँ में क्यूँ आखिर
कोई इंसान जन्म लेता नहीं
खिलौनों की तरह जो
जिंदगी से खेलते हैं
रहम का बदला हमेशा
बेरहम बन लेते हैं
कब तलक कोई इन्हें
सही राह रोज दिखलायेगा
अंत आ चुका जिसका
खैर कब तक मनायेगा
सुन्दर रचना
Nice line