अपने मन को कभी न डगमगाना

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने मन को
कभी न डगमगाना
भले ही त्याग दे,
तुझको ये स्वारथ का जमाना,
अपने मन को
कभी न डगमगाना।
भले ही लाख परेशानियां
आएं तुझ पर।
मगर तू लौह सा बन हौसला रखे रखना।
अपने कदमों को बढ़ाते रहना,
किसी से झूठी आस मत रखना,
खुद की मेहनत में भरोसा रखना,
गन्दी बातों से किनारा रखना,
सच का सच में तू सहारा रखना,
जीतना मंजिलों को
जीतकर फिर खिलखिलाना,
अपने मन को
कभी न डगमगाना।

रोशनी आये

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोशनी आये
भले ही कहीं से भी
मगर वो आये,
अंधेरे को हराने आये।
उसकी किरणें हों
इतनी तीखी सी
आवरण भेद कर
भीतर जहां हो मन
वहां पहुंचें,
मिटा दें सब अंधेरा।
और जितनी भी
लगी हो कालिख
उसे भी साफ कर
चमका दे हुस्न मेरा।
वो हुस्न भीतरी है
दिखता नहीं है बाहर
उसे तो रब ही देखता है,
वो सदा साफ रहे मेरा।
क्योंकि रब ही तो सब है
उसकी बाहर व भीतर
सब तरफ ही नजरें हैं
कहीं वो देख न ले
कालिमा मेरे मन की।
इसलिए रोशनी आये
व भीतर तक समाये
मिटा दे साफ कर दे
कालिमा मेरे मन की।

जिन्दगी ने दिया है तोहफा हो

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्दगी ने दिया है तोहफा हो
प्राणों की हरेक सांस हो तुम,
सजा चमन तुम्हीं से आज मेरा,
कल भी जी लेंगे ऐसी आस हो तुम।
जबसे आई, बाहर लाई हो
लुटाती नेह, चली आई हो,
बनी वनिता मगर बनी सब कुछ
रोशनी बन के खूब छाई हो।
गम हों खुशियां हों चाहे कैसे भी
सभी में साथ तुम बराबर हो,
अंग अर्धांगिनी समाहित हो
धर्म सहधर्मिणी सी शोभित हो।
सारे सुख-दुख समेट लेती हो
अपने आँचल में बांध लेती हो,
ऐसे जीवन संभाल लेती हो
एक उफ्फ तक भी नहीं करती हो।
सात फेरों को अग्नि के लेकर
इतना सच्चा स्नेह करती हो,
सात जन्मों में हम न दे सकते
जितना तुम एक में ही देती हो।

मिट्टी है सब तरफ जी

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखो जरा सा बाहर
मिट्टी है सब तरफ जी,
मिट्टी में हैं जन्मते
मिट्टी में खेलते हैं,
मिट्टी में जड़ हमारी
मिट्टी है सब तरफ जी।
रोड़ी- सीमेंट की जिस
चमकी छठा में हो तुम,
ये भी तो सब है मिट्टी
मिट्टी है सब तरफ जी।
छिप जाओ मार्बल में
कितना ही आजकल तुम
होना है फिर भी मिट्टी
मिट्टी है सब तरफ जी।
कोमल सी देह में जब
सांसें व धड़कनें हैं,
तब तक ही है वो इन्सां
बाकी तो मिट्टी है जी।
सब कुछ है मिट्टी मिट्टी
मिट्टी से ही है सब कुछ,
मिट्टी के हम हैं पुतले
मिट्टी है सब तरफ जी।

उठा पटक लगी ही रहती है

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये उठा पटक लगी ही रहती है
दूरियां और करीबी मिलकर,
जिन्दगी की कहानी चलती है।
कभी बुलंदियों में होते हैं,
कभी सतह में पड़े होते हैं,
कभी है अर्श का चौड़ा सीना
फिर कभी फर्श पड़े जीना।
इसी नाम जिन्दगी कहते,
इसके पल एक से नहीं रहते।

मेहनत कर ले मेहनत कर ले

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

होगा सफल एक दिन निश्चित
मेहनत कर ले मेहनत कर ले,
मेहनत ही है राह शिखर की,
सच्चे मन से मेहनत कर ले।
सच्चा यत्न किया है जिसने
फल पाया है निश्चित उसने,
तू भी पाने को आगे बढ़
सच्चे मन से मेहनत कर ले।
दृढ़ प्रतिज्ञारत यदि होगा,
कुछ भी कठिन नहीं मानेगा,
जीतेगा मनचाही बाजी
सच्चे मन से मेहनत कर ले।
श्रम और प्रयास ये दोनों
आगे बढ़ने की कुंजी हैं,
बिना थके परिश्रम किये जा
मंजिल को कदमों में कर ले।
आलस छोड़ अभी से जुट जा
भाग्य भरोसे मत रह तू,
दिया नहीं ईश्वर ने मत कह
अपने दम पर हासिल कर ले।
उन्नति की कल्पना अगर
करनी है तो मेहनत कर ले,
एक भी क्षण बेकार गंवा मत
उद्यम कर आगे बढ़ ले।

हम तो विद्वतजनों के कायल हैं

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम तो विद्वतजनों के कायल हैं,
उनकी सच्चाइयां हैं मित्र अपनी,
उनकी अच्छाइयाँ हैं मित्र अपनी,
उनकी वाणी से लाभ पायें सभी,
उनको कोई भी दुख न होवे कभी।

वो मेरी स्नेह की पुड़िया

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो जब भी सामने रहती है
सब गम भूल जाता हूँ,
नहीं कुछ याद रखता हूँ
स्वयं को भूल जाता हूँ।
खुशी का गीत है वह
प्रेम का संगीत है वह ही
उसी के सामने लिख कर
उसी को ही सुनाता हूँ।
न चेहरे पर उदासी एक पल
उसके रहे ऐसा,
हमेशा यत्न करता हूँ
चुहल करके हंसाता हूँ।
अगर मन में कभी मेरे
थकावट हो जरा सी भी,
वो तत्क्षण भांप लेती है
मुझे उत्साह देती है।
बताता हूँ वो ऐसी कौन है
जो पूर्ण अपनी है,
वो मेरी स्नेह की पुड़िया
वो मेरी धर्मपत्नी है।
———– डॉ0 सतीश पाण्डेय

दबे पांव निकल लेते हो

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे किन बातों की सजाएं दे रहे हो तुम,
टेढ़ी नजरों से तक देख नहीं देते हो।
कहीं किसी और की धमक तो नहीं है जो कि,
शांत चेहरे उलझन पाले रहते हो।
कहीं कोई और मुझ से तो बेहतर नहीं,
जिसके कारण नजरों को फेर लेते हो।
नये फूल की तरफ खिंचे रह जाते हो यूँ,
उसकी सुगन्ध के दीवाने बन जाते हो।
हम तो लगे हैं आशा एक मुस्कान दोगे,
तुम किनारे से दबे पांव निकल लेते हो।
———– डॉ0 सतीश पाण्डेय,
—- उत्तराखंड

मेरे पिया परदेशी

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता – मेरे पिया परदेशी
(छंदबद्ध कविता)
**********************
चारों ओर शरद की धूम मची देख सखी,
पिया मेरे आयेंगे न जाने कब तक अब।
बीती बरसात आँख सूख गई अब मेरी,
नींद नहीं चैन नहीं हर गई भूख मेरी।
बिना पिया काटी है ये बरसात भरी रात,
दूरभाष में भी नहीं हुई अब तक बात।
ऐसी व्याधि से भरा है संसार आज यह,
फिकर है मेरे पिया जाने कैसे होंगे तब।
जा री शरद की हवा देख कर आ तो जरा,
मेरे परदेशी पिया कैसे हैं किधर हैं।
मिलें यदि तुझे कहीं मेरे परदेशी पिया,
बता देना मेरी आँखें व्यथित इधर हैं।
———– डॉ0 सतीश पाण्डेय

हौसला रख आगे बढ़

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता – हौसला रख आगे बढ़
(रोला छंद का रूप- मात्रा 11-13)
***********************

मंजिल पानी है तो, हौसला रख आगे बढ़,
विचलित मत हो किंचित, जीत का स्वाद तू चख।
अपने को कमजोर, समझ कर भूल न कर तू,
शक्ति जगा भीतर की, केवल सत्य से डर तू।
निडर वीर तू जगा, उमंग को अपने भीतर,
पा लेने की मुखर, आग हो तेरे भीतर।
राह भरे कंकड़ हों, तब भी तेज ही चल ले,
मंजिल तेरे आगे, मंजिल को अपनी कर ले।
————- डॉ0 सतीश पाण्डेय

कागज

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कागज!!
बड़े काम के हो आप
युगों युगों से
आप पर कलम
अंकित करते आई है,
तमाम तरह का साहित्य।
आप में अब तक का
दुख-सुख, उत्थान-पतन,
आशा-निराशा,
उत्साह-अवसाद,
इतिहास,
सब कुछ अंकित है।
मानव क्या था, क्या है
जीवन कैसा था, कैसा है
सब कुछ आप पर ही
अंकित है।
आप न होते तो
कैसे हम अपना
बीता कल जानते।
आप न होते
कैसे हम सहेजा हुआ
आत्मसात कर पाते।
आप न होते तो
कैसे हम अपनी संवेदना
को अंकित कर पाते।
आप पर अंकित भंडार ही तो
भावी पीढ़ी के लिए
वरदान है,
जीवन जीने का ज्ञान है।
कागज
आपका होना
हमारे लिए वरदान है
आपकी महत्ता का
हमें भान है।
——— डॉ0 सतीश पाण्डेय

मिट्टी में मिल जाना है

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वारथ की खातिर दूजे का
दिल नहीं दुखाना है,
आज नहीं तो कल सबने
मिट्टी में ही मिल जाना है।
धुँवा धुँवा होकर उड़ना है,
बचा हुआ जल में बहना है,
शेष नहीं रहना है कुछ भी
यादों को ही रह जाना है।
यादें भी कुछ वर्षों तक
रहती हैं फिर मिट जाती हैं,
वेदों का कहना है,
संगी बन कर्मों को जाना है,
आज नहीं तो कल सबने
मिट्टी में ही मिल जाना है।
दूजे उन्नति होने पर
चिंता में क्यों जलना है,
चार दिवस जीवन है
चिर निद्रा में सो जाना है।
कर्म नहीं छोड़ना है,
सच्ची राहों पर चलना है,
अपना करना कर देना
बिंदास भाव से जीना है।
ज्यादा तू तू मैं मैं करके
हासिल ज़ीरो हो जाना है
आज नहीं तो कल सबने
मिट्टी में ही मिल जाना है।
—– डॉ0 सतीश पाण्डेय,
——– चम्पावत, उत्तराखंड

धरती सचमुच माता है

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

धरती तो सचमुच माता है
सारा बोझ इसी पर तो है,
जन्म इसी पर मरण इसी पर
सारा बोझ इसी पर तो है।
हम अपने स्वारथ की खातिर
पाप कर्म में रत रहते हैं,
कभी जरा सा पुण्य कर दिया,
गर्वित मन में रहते हैं।
जरा किसी को दान कर दिया
हम समझे राजा बलि खुद को
धरती सारा दान कर रही
कभी जताती नहीं है खुद को।
अज्ञानी हम इसके तल पर
बुरे कर्म करते रहते हैं,
इसका सीना छलनी करके
अपना हित साधा करते हैं।
मगर धरा का धैर्य जिसे
वेदों ने भी गुणगान किया,
उसी धैर्य की मानव ने
अनदेखी की, अपमान किया।
प्राण बचाने को भोजन
देती है, धरती माता है,
तरह तरह के मधुर फलों को
हमें खिलाती माता है।
अपने तल पर हमें सुलाती,
प्राणवायु से थपकी देती,
हर इच्छा पूरी करती है
धरती सचमुच माता है।

नई रोशनी हो

October 19, 2020 in ग़ज़ल

सुबह की, किरण हो नई रोशनी हो,
बहारों भरी हो, नई रोशनी हो।
जिन्हें रात भर चैन की नींद आयी,
उन्हें जगमगाती, नई रोशनी हो।
बिखरते हुये दिल अंधेरा घिरा हो,
उन्हें राह देती, नई रोशनी हो।
युवा नव दिशा में कदम को बढ़ाये,
पथों का उजाला, नई रोशनी हो।

मुस्कान देंगे

October 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सोते समय तुम हमें याद करना
दवा नींद की बन सुकूँ-चैन देंगे।
अगर स्वप्न में दिख गए आपको हम,
आवाज देना, मुस्कान देंगे।

जवाँ सी जवाँ है

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हवा आजकल कुछ जवाँ सी जवाँ है,
दिले धड़कनें भी जवाँ सी जवाँ है।
उदासी नहीं रख कहीं मन लगा ले,
अभी तो जवानी जवाँ सी जवाँ है।
अंधेरा तुझे रोक पाये कभी ना
खिली रोशनी जब जवाँ सी जवाँ है।
कि भार्या तुम्हारी, इसी भांति खुश हो,
मुहोब्ब्त तुम्हारी, जवाँ सी जवाँ है।

बिटिया रानी

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोटी सी है बिटिया रानी
ऐसी लगती बड़ी सयानी,
अपनी ही भाषा में जाने
क्या कहती है गुड़िया रानी।
वॉकर में बैठाओ कहती
उसमें पांव टिकाकर चलती
खड़े नहीं हो पाती है पर
करती है काफी शैतानी।
कहती है बस गोदी में लो
इधर घुमाओ उधर घुमाओ,
चीजों को मुंह में लेती है,
धूम मचाती गुड़िया रानी।
थोड़ी देर पकड़ती गुड़िया
छम छम छम झुनझुना बजाती,
जिससे खेल लिया फिर उससे
ऊबने लगती गुड़िया रानी।
भूख लगी तो सायरन देती
प्यास लगी तो होंठ बताते,
मम्मी उसकी समझ लेती है
चाहती क्या है गुड़िया रानी।

बाल कविता – स्कूल बैग

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाल कविता – स्कूल बैग
***********
मेरा प्यारा स्कूल बैग
सुन्दर सा है स्कूल बैग,
चलती हूँ तो पीठ में रहता
न्यारा सा है स्कूल बैग।
सभी किताबें और कापियां
रहती प्रेम भाव से इसमें,
पेंसिल कलम लंच बॉक्स से
भरा भरा सा स्कूल बैग।
वाटर बोतल, फल के दाने
कभी टाफियां, कभी चॉकलेट,
नई नई चीजों से सज्जित
मेरा प्यारा स्कूल बैग।
मेरा प्यारा स्कूल बैग
सुन्दर सा है स्कूल बैग,
चलती हूँ तो पीठ में रहता
न्यारा सा है स्कूल बैग।
डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय
***********

चीन की कठपुतली बनकर

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चीन की कठपुतली बनकर
कब तक ऐसा व्यवहार करोगे,
लड़ना है तो खुलकर आओ
कब तक छिपकर वार करोगे।
पाकिस्तान, नेपाल आदि तुम
अभी समय है संभल भी जाओ,
दूजे की बंदूक उठाकर
कब तक यूँ प्रहार करोगे।
लालच देकर भुला रहा है
ये लो रोटी, लो बारूद
कब तक ड्रैगन के लालच में
खुद को तुम बर्बाद करोगे।
बहुत कर चुके हो सिरदर्दी
आतंकी साजिश घटिया सी,
अब भारत को व्यथित मत करो
वरना खुद को बर्बाद करोगे।

दया धरम की राह छोड़ो मत

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस तरह बम पटाखे फोड़ो मत,
कान डरते हैं, कान फोड़ो मत।
निर्दयी से करो किनारा तुम
दया धरम की राह छोड़ो मत।
मिलो ऐसे मिलो, दूध में बतासे से
कच्चे धागों में खुद को जोड़ो मत।

वृद्धाश्रमों में मत ठूँसो

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देवी माँ का पूजन कर लो
लेकिन अपनी मां मत भूलो,
जिसने जनम दिया तुमको
वृद्धाश्रमों में ठूँसो।
थोड़ा सा सोचो-समझो,
बुजुर्गों की इज्जत कर लो,
अपने संतोष की खातिर उनको
वृद्धाश्रमों में मत ठूँसो।
जींर्ण शरीर क्षीण ताकत को
एक सहारा वांछित है,
बनो ठोस सहारा तुम
वृद्धाश्रमों में मत ठूँसो।
पूजन कर लो खुश रहो मगर
मां-बाप त्याग कर क्या पूजन
मां-बाप हैं ईश्वर यह समझो
वृद्धाश्रमों में मत ठूँसो।

नयन आपके

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नयन आपके राह भटका रहे हैं,
जरा सा चलें तो अटका रहे हैं।
हुआ क्या अचानक उन्हें आज ऐसा
हमें देख जुल्फों को झटका रहे हैं।
इल्जाम हम पर लगाओ न ऐसे,
दिल ए द्वार वे खुद खटका रहे हैं।
दिल टूटने से दुखी हैं बहुत वे
मगर गम नहीं है, जतला रहे हैं।

कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत
पहले है रोटी फिर है मुहोब्बत।
जरा पास आओ, हमें कुछ है कहना।
नहीं ठीक ऐसे सभी से मुहोब्बत।
हमें देखकर फूल भी मुंह चुराते।
बिना फूल के किस तरह है मुहोब्बत।

कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत
पहले है रोटी फिर है मुहोब्बत।
जरा पास आओ, हमें कुछ है कहना।
नहीं ठीक ऐसे सभी से मुहोब्बत।
कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत
पहले है रोटी फिर है मुहोब्बत।
जरा पास आओ, हमें कुछ है कहना।
नहीं ठीक ऐसे सभी से मुहोब्बत।

अंधेरे से ज्यादा, करीबी न रखना,

October 16, 2020 in ग़ज़ल

अंधेरे से ज्यादा, करीबी न रखना,
अंधेरे से दूरी बनाए ही रखना।
भले ही जमाना, तुम्हें कुछ न समझे,
मगर हौसले को बनाये ही रखना।
चली आंधियां है, धूल उड़ रही है
आंखों को अपनी बचाये ही रहना।
भरी दोपहर, तेज सूरज की किरणें,
मासूम चेहरा छुपाए ही रखना।

मुहोब्बत अगर साफ पानी से होगी

October 16, 2020 in ग़ज़ल

वफ़ा कीजिए खुद वफ़ा ही मिलेगी,
धोखे से बस बेवफाई मिलेगी।
मुहोब्बत अगर साफ पानी से होगी,
दिल ए गंदगी को , जगह ना मिलेगी।
सड़क धूल से, इस कदर जब भरी हो,
पांवों को निर्मल, वफ़ा ना मिलेगी।
सदा कोसते हम रहे दुश्मनों को
मगर इससे कोई दिशा ना मिलेगी।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय

सीमा में दुश्मन

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज फिर से हरकतें
सीमा में दुश्मन कर रहे हैं,
बेवजह उत्पात कर
हमको परेशां कर रहे हैं।
चीन अपनी बदनीयत से
जाल फैलाने जुटा है,
पाक को कब्जे में लेकर
साजिशें करने लगा है।
साथ में नेपाल को
लालच को लाकर वह ड्रैगन
भूमि उसकी हिन्द के
विपरीत करने में लगा है।
अब हमें सावधान होकर
तोडना है साजिशों को,
साध अर्जुन सा निशाना
रोकना है जालिमों को

अमावस को चमकते हैं

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

न करना इस तरह
संदेह हम पर आप यूँ
हम तो सितारे हैं
अमावस को चमकते हैं।
निगाहों पर निगाहें डालकर
दिल में धमकते हैं,
आपके मुस्कुराते होंठ में
हम ही चमकते हैं।

अरे, न हो, इतना निराश तू

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अरे, न हो, इतना निराश तू
बाधाएं आती रहती हैं,
मगर हौसले रहें बुलंद तो
खुशियां कदम चूमा करती हैं।
असफलताओं से मत घबरा
सच्ची में तू मेहनत कर ले,
सच्चाई पर विश्वास जगा
बाकी से अब दूरी रख ले।

मन में नई उमंगें

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन में नई उमंगें
फिर से उमड़ रही हैं,
कालिमा की परतें
सचमुच उखड़ रही हैं।
दुविधाएं आज सारी
मिटकर सिमट रही हैं
बाधाएं आज सारी
पथ की निपट रही हैं।
मंजिल को चूमने को
आतुर हैं मन की लहरें
तूफान जैसी बनकर
तट पर मचल रही हैं।

राज मत पूछो

October 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

राज मत पूछो
उन्हें क्यों चाहता है दिल
गर बता देंगे हकीकत
आप भी जाओगे हिल।
इसलिए होंठो को हमने
अब दिया है सिल,
ताकि भरते घाव कोई
फिर न पाये छिल।
डॉ0 सतीश पाण्डेय

मुस्कुराना छोड़ना मत

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम भले ही मुंह फुला दो
मुस्कुराना छोड़ना मत,
गीत गायें हम कभी तो
गुनगुनाना छोड़ना मत।
यदि बताएं बात दिल की
बीच में ही टोकना मत,
जो कदम आएं हमारी ओर
उनको रोकना मत।
जब कभी इजहार करना हो
तुम्हें चाहत का अपनी
बोल देना खुल के सब कुछ
क्या कहूँ यह सोचना मत।
गर रही सच्ची मुहोब्बत
वो झुका देगी अकड़
दूसरा पत्थर का हो तो
तुम स्वयं को कोसना मत।
– डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत

हम पलों का नहीं

October 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम पलों का नहीं
पलकों का हिसाब रखते हैं,
जिनको दुत्कारते सब
उनसे मिलाप रखते हैं।
जब कभी नींद नहीं आती है
रात भर करवटें सताती हैं,
तब लगा ध्यान, बन्द आंखों से
खुद का खुद से मिलाप करते हैं।

धूल में यौवन के सपने- बेरोजगारी

October 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज है मन खिन्न कवि का
देख चारों ओर अपने
घिर गई बेरोजगारी
धूल में यौवन के सपने।
देखकर उस दुर्दशा को
क्या लिखें, कैसे लिखें,
पढ़ रहे हैं, डिग्रियां हैं,
बस पुलिंदे ही दिखें।
भीड़ है चारों तरफ
अकुशल पढ़ाई हो रही है,
भर्तियों पर कोर्ट में
न्यायिक लड़ाई हो रही है।
एक विज्ञापन की भर्ती
को निपटने में यहां
पांच से छह वर्ष लगते हैं
युवा जाये कहां।
छा रही है बस निराशा
हो गया यौवन दुखी,
सोचता है कुछ करूँ
मेहनत करूँ आगे बढूं।
पर बढ़ेगा किस से
रास्ता तो बन्द है,
देश की आर्थिक परिस्थिति
गिर रही है, मन्द है।
कुछ करो फिर कह रही है
कवि कलम आवाज देकर,
देश की ओ शीर्ष सत्ता
कुछ करो अब ध्यान देकर।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय
चम्पावत, उत्तराखंड

आंखों में चाहत, सजी हुई है

October 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आंखों में चाहत, सजी हुई है,
दिलों की धड़कन, बढ़ी हुई है।
न कह सके हैं वो, कुछ भी हमसे,
हमें भी हिम्मत, नहीं हुई है।
मगर आहटें ये, बता रही हैं,
दस्तक तो है पर, छिपा रही हैं।
गुलाब से होंठो, को दबाकर
भीतर ही मुस्कान, छिपा रही है।
न वो बताती है, बात क्या है,
न हम बताते हैं, राज क्या है।
बिना ही बोले न जाने कैसे,
स्वयं मुहोब्बत, जता रही है।
ख्याल रखती है, दिल से लेकिन
रखती है क्यों यह, छिपा रही है,
न बोल मुख से मुहोब्बत की बातें
इशारे इशारे से समझा रही है।

उड़ा खुशबू

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हजारी खिल, उड़ा खुशबू
बुला भंवरा, सुना संगीत।
भेज संदेश, प्यारा सा,
बुला तू अब, मेरा मनमीत।
रही है जो, भी चाहत सी
उसे मकरंद में रखकर
सुगंधित कर फिजायें सब,
बढ़ा दे ना, परस्पर प्रीत।
मौसम गया, बरसात का
शरद रितु है, मुहाने पर,
बुला दे प्रिय, को मेरे
न आया जो, मनाने पर।
शब्दार्थ –
हजारी – गेंदा

अश्क मेरे, नैन तेरे

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अश्क मेरे, नैन तेरे
बूंद निकली, कब गिरी यह,
तू बता दे, बात क्या है,
मैं समझता, हूँ नहीं यह।
चूक मत यूँ, बोल दे अब।
जो हो कहना, आज ही कह।
कल कहेंगे, कल सुनेंगे,
इस तरह , उलझे न रह।
यह विदाई, है क्षणिक तू
इस विदाई, से न डरना,
बैठ दिल में, साथ हूँ मैं
बस कभी भी, याद करना।
तार दिल के, जुड़ चुके हैं,
दूर हों या, पास हों हम।
अब नहीं है, डर जुदाई,
एक हैं हम, नेक हैं हम।
मधुमालती छंदाधारित कविता – शीर्षक – मन
(कुल 14 मात्रा, विन्यास 2212, 2212)

मन

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मधुमालती छंदाधारित कविता – शीर्षक – मन
(कुल 14 मात्रा, विन्यास 2212, 2212)
*******************
मन फूल सा, कोमल न हो,
पर ठोस हो, तो बात है।
मन ही न हो, तब आदमी,
क्या आदमी, है खाक है।
मन न छोटा, कर ए मानव,
मन बड़ा रख, जोश में रह।
डूब मत यूँ, दर्द में तू,
त्याग निद्रा, होश में रह।
मन जरूरी, जिन्दगी को
मन नहीं तो, कुछ नहीं है।
कुछ करो तुम, काम लेकिन
मन नहीं तो, कुछ नहीं है।
तू जगा ले, यह ललक अब,
जिन्दगी है, रोशनी है,
रोशनी पा, खूब खुश रह,
अपनी मंजिल, खोजनी है।

साँझ है सखी

October 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रात और दिन का मिलन साँझ है सखी,
कब मिलोगे टकटकी में आंख है सखी।
आ रही है रात दूर जा रहा दिन
खोल कर कपाट दिल के झाँक ले सखी।

गम मिटाना तुम

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रखना लगाव खोलकर के द्वार दिल के तुम।
जितना वो दे उससे भी अधिक प्यार देना तुम।
कभी किसी दुखी का दर्द मत बढ़ाना तुम,
जरा सा नेह देना और गम मिटाना तुम।
चूमो शिखर मगर नजर जमीन पर रहे,
जिस भूमि पर खड़े हो उसे मत भुलाना तुम।
कोई पसंद गर न हो तो छोड़ दो उसे,
जबरन पसंद थोप कर के मत रुलाना तुम।

आपकी निगाहों में

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी निगाहों में
इस कदर नशा देखा,
भरी हो जैसे कोई
तेज, तीखी हाला।
हम तो हाला कभी
सूँघते तक नहीं थे,
और खूबसूरती पर
लिखते नहीं थे,
मगर क्यों हुआ
देखने में नशा सा,
मन क्यों लगा
इस तरफ यूँ खिंचा सा।
चलो जाने दो,
अब न देखो इधर तुम,
नहीं झेल पायेंगे
नैन का नशा हम।

खुशबू यहाँ तक आ रही है

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी नेह भरी सोच की
खुशबू यहाँ तक आ रही है,
यह पवन दे मंद झोंका,
मन ही मन मुस्का रही है।
बात पूछो तो न बोली
बस इशारा कर रही है।
लग रहा है आपकी ही
भाँति यह शरमा रही है।
अबके जब भेजो पवन को
साफ कह देना इसे
छोड़कर सारी झिझक
सब कुछ बता देना मुझे।
डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत

छोटी बातों में न लग

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब बड़ा तू बन चुका है
छोटी बातों में न लग
ईर्ष्या, विद्वेष, नफरत
ऐसी बातों में न खप।
अन्यथा था तू अर्श से
फिर फर्श में आ जायेगा,
फर्श पर हम जैसे छोटे
लोग ही तू पायेगा।
हम हैं छोटे , बात भी
छोटी हमारी है सदा से,
क्यों पड़ा छोटों के पीछे
न्यून हम, हमको भुला दे।
अब बना मंजिल न हमको
अब बड़ा तू बन चुका है,
और आगे बढ़, क्यों हमको
रोकने को ही रुका है।

शब्द चित्र – सुबह हो रही है

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह हो रही है,
घौंसले से बाहर आने को आतुर
चिड़िया ने पंखों को भुरभुराया,
सहलाया, मानो योग कर रही हो,
गर्दन इधर की, उधर की
फुर्र उड़ी
अपने दैनिक कार्य निपटाने चली।
समय की पाबंद
अपनी प्राकृतिक ब्यूटी में
लग गई है ड्यूटी में
भोजन की व्यवस्था करने
खुद के लिए भी
अपने बच्चों के लिए भी।
अब आप भी उठो ना
कुछ काम में जुटो ना।

यूँ खफा मत रहो

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूँ खफा मत रहो
भुला दो बात बीती,
कब तलक गांठ मन में
आप बांधे रहोगे।
आप थोड़ा अधिक अच्छे
हम जरा सा बुरे
हैं तो इंसान ही
यूँ फर्क तुम कैसे करोगे।
अगर इंसान हैं तो
खूब कमियां भी रहेंगी
कमी की बात कर यूँ
कब तलक नफरत करोगे।

भानु की ये जवाँ किरणें

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भानु की ये जवाँ किरणें
हमें संदेश देती हैं,
बीच से बादलों को भेदकर
आगे निकलना है।
चमकना है क्षितिज में
नफ़रतों का तम मिटाना है,
दिलों में गर्मजोशी हो
जरा सा ताप रखना है

मगर अभिमान मत करना

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा सी भी तुम्हें
असली खुशी
गर आज मिल जाये।
पकड़ कर कैद कर लेना
मगर अभिमान मत करना,
उग रहा हो अगर सूरज
तो उगने दो, उगेगा ही,
उसे तुम देख गुस्से से
नयन कमजोर मत करना।

उलझी-सुलझी कविता – जगा आग

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंधेरे में घिरा आकाश
ठीक वैसा
जैसा खुद पर न हो विश्वास।
तारामंडल का टिमटिमाना
ठोस निर्णय ले न पाना,
ठीक एक जैसा है,
अपनी बात पर
स्थिर न रह पाने जैसा है।
कदम उठाना
तब उठाना
जब विश्वास हो खुद पर।
अंधेरा चीरने का
संकल्प हो जब
तब कदम उठाना
अन्यथा पड़े रहना
दिवास्वप्न देखना,
नहीं नहीं
आ अंधेरा तो
मिटाना ही होगा,
रात स्वप्न देखकर
सुबह उसे
सच बनाना होगा।
जाग, खुद पर
कर विश्वास,
मन स्थिर रख,
आगे बढ़ने की जगा आग।

रौनक सज रही है आजकल

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूबसूरत काव्य सरिता
बह रही है आजकल,
इस भरी महफ़िल में
रौनक सज रही है आजकल।
प्रेम है, उत्साह है
एक दूसरे की चाह है,
है मिलन मधुरिम बहारें
औ विरह की आह है।
प्रकृति का लद-कद है चित्रण
साथ में है आम जीवन,
देख लो महफ़िल हमारी
खिल रही है आजकल।

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