पत्थर न मारिये

October 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शांत बह रही सरिता में
पत्थर न मारिये,
कर सको तो आप भी
स्नान कीजिये,
अन्यथा किनारे की
शीतल पवन का आनन्द लीजिए।

न करना मन दुःखी

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

न करना मन दुःखी
किसी की बातों से
ये तो दुनिया है
रुला देगी, तुम्हें बातों से।
भरोसा हो उसी पर
जो समझता हो तुम्हें
न जुडना भूल कर भी
खुदगरज के नातों से

साँझ

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

धीरे-धीरे चुपके चुपके
पड़ रही है साँझ
हम भीतर ही थे
पता ही नहीं चला कि
कब आई दबे पांव साँझ।
अभी तो उजाला था,
चहक रही थी चिड़ियाएं,
दिख रही थी
चारों ओर के पहाड़ों की छटाएं।
अब झुरमुट अंधेरा छा रहा है,
शहर शांत हो रहा है।
बिलों में छुपे चूहों का
सवेरा आ रहा है।
दिन भर किसी का समय था
अब रात किसी का समय आ रहा है।
बता रहा है कि
सभी का समय आता है
दिनचरों का भी रात्रिचरों का भी
बस समझने की बात यही है कि
समय का सदुपयोग
कौन कर पाता है

तुम्हारी मुस्कुराहट में

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज तुम्हारी
मुस्कुराहट में
वो बात दिख रही है,
जिस पर लिखने को
कलम – कागज लिए
हजारों हाथ भी
काँपते हुए, घबराते हुए
असहाय होकर,
नहीं लिख पाते हैं, सीधी कविता।
असहाय हाथ, उलझी कविता,
असहाय शब्दों की कठोरता,
तोड़ देती कलम
झटक देती है हाथ,
लय भी छोड़ देती है साथ।
आंखें शरमा जाती हैं,
उसी अवस्था में पहुंचा कवि
व उसकी कलम
अवाक सी
इस मुस्कुराहट पर स्थिर हो गई है।

सजाकर भाव रसना से

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहो, कविता!!
तुम तो
बहुत ही खूबसूरत हो,
सजाकर भाव रसना से
मधुर अभिव्यक्ति करती हो।
जीवन का सुख व दुख
सब कुछ समेटे हो
स्वयं में तुम,
समझ संवेदनाओं को
विलक्षण रूप देती हो।
जरा सी पंक्तियों में तुम
बड़ी सी बात कहती हो
सहृदय में विचरती हो
दिलों में राज करती हो।
जहां कोई न पंहुचा हो
वहां तक तुम पहुंचती हो,
बनी जीवन का आईना तूम
सुखद राहें दिखाती हो।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दस अक्टूबर है आज
जीवन के लिए है खास
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है आज
थोड़ा जगाना होगा समाज।
जिस तरह जरूरी है तन का
स्वस्थ और सुडौल रहना,
ठीक उसी तरह तरह जरूरी है
मन में सकारात्मक सोच रखना।
उदासी को, निराशा को
दूर भगा देना है,
गुस्सा, चिड़चिड़ापन और
खालीपन मिटाना है।
जरा सी बात पर चिंता
जुंनूँ उल्टा, अनिद्रा,
भ्रम करना, और डरना
आत्महंता सोच रखना,
इन सभी पर वक्त पर है
सावधानी अब जरूरी
मानसिक पीड़ाएँ हैं ये
इनको मिटाना है जरूरी।
यदि कभी घर और बाहर
आपको पीड़ित दिखे तो
सावधानी से उसे
पहचानना है अब जरूरी।
अवसाद से रखनी है दूरी
आज सबने आप हमने,
स्वस्थ जीवन के लिए है
स्वस्थ मन बेहद जरूरी।

हर वक्त साथ में है

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोते समय उस पर नजर
जगते समय उस पर नजर
दिन भर है साथ में वह
हर वक्त है उस पर नजर।
यदि वो न हो तो सब कुछ
लगता मुझे अधूरा,
वो ही तो है जो मुझको
रखता है व्यस्त पूरा।
हर वक्त साथ में है
हर वक़्त हाथ में है
एक पल नहीं है दूरी
वो बन गया जरूरी।
कोविड़ में दोस्तों से
मिलना नहीं हुआ तो
उसने कमी की पूरी
खुद दोस्त बन गया वो।
सोचो बताओ इतना
नजदीक कौन मेरा
ये प्रियसी नहीं बस
स्मार्टफोन मेरा।

दोस्ती

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दोस्तों के नाम पर
कुर्बान हर पल
भीतर से हृदय से
आवाज गूंजी है,
दोस्ती तो ताकत
होती है सबकी
दोस्ती तो जीवन की
अनमोल पूंजी है।

टुन की आवाज होती है

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तीस किमी दूरी तय करने में
पांच बार बाइक रोकता हूँ,
मोबाइल खोलकर
व्हाट्सएप पर
उसका मैसेज खोजता हूँ।
फिर आगे बढ़ता हूँ,
फिर टुन की आवाज होती है
बेचैनी बढ़ती है,
मेरी बाइक रुकती है,
फिर व्हाट्सप खोजता हूँ,
उफ्फ अब भी मैसेज नहीं,
फिर चलता हूँ,
फिर रुकता हूँ
समय ऐसे ही बीतता है
जमाना इसे मेरी
मोहब्बत कहता है।

न जा सकोगे

October 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

न जा सकोगे
गली से
चुरा नजर हमसे,
गली दबा देंगे,
अगर यूँ जाओगे।
नजरअंदाज कर
हमारी चौखट को,
दो कदम भी
बढ़ा न पाओगे।

छोटा सा बीज पीपल का

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोटा सा बीज पीपल का
बड़ा सा पेड़ बनकर
हजारों वर्ष तक
प्राणवायु देता है
जिसे पूजकर
हर कोई
हुमायूं होता है।
इसी तरह न समझो
कि छोटा कभी बड़ा नहीं बनता है
बल्कि मौका और मेहनत से
गरीब का बच्चा भी एक दिन
शहंशाह बनता है।

किसी गरीब की

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी गरीब की
कभी मदद न की हो तो
आज ही कीजिए,
टेंशन न लीजिए
देर मत कीजिये
खुदा के वास्ते
कुछ दान-धरम कीजिये।
खुदा भले ही न दे
इसके बदले में तुम्हें,
मगर अब तक जो मिला
उसी को ध्यान में रख
किसी मुफ़लिस कभी
मदद न की हो तो
आज ही कीजिये,
टेंशन न लीजिए
आपको सुख मिलेगा
सदा बरकत रहेगी,
दुआ कुबूल होगी,
रब की रहमत मिलेगी।

मुहोब्बत

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बह रही प्यार भरी सरिता हूँ
तुम्हारी लेखनी की
एक सधी कविता हूँ,
दिलों में बस मेरी हुकूमत है
न पूछो नाम मेरा
नाम तो मुहोब्बत है।

पवित्र सी सुगंध

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहीं बहुत दूर से
हवा उड़ा कर ला रही है
प्यारी सी सुगन्ध किसी फूल की।
निराली सुगन्ध
नासिका के भीतरी
इन्द्रिय स्थान पर,
अपनी उपस्थिति का
नया अहसास करा रही है।
पवित्र सी सुगंध
वासनारहित अपनेपन का,
प्रकाश जगा रही है।
निस्वार्थ स्नेह से जीने का
पाठ पढ़ा रही है

बीतता गया समय

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदलती प्रकृति के
निराले खेल,
कितनी उमंग से उगी थी
बरसात में,
कद्दू, ककड़ी, लौकी की बेल।
मौसम बदलते ही
मुरझाने लगी, सूखने लगी
छोड़ गई अपने निशान,
बीतते रहे ऐसे ही दिन-वार
ताकता रह गया इंसान।
कभी हरा-भरा बना
कभी मुरझाया,
कभी हारा,
कभी महसूस की विजय
ऐसे ही बीतता गया समय।

नारी, नहीं रौनक हो तुम

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी, नहीं रौनक हो तुम
घर की प्राण हो, जान हो तुम
भीतर खुशियों की खनखनाहट
बाहर अभिमान हो तुम।
माँ-बहन-पत्नी, बेटी
रिश्तों का मधुर गान हो तुम
कुछ भी कहे कविता मगर
जिंदगी की शान हो तुम।

पाप करता हूँ

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भरी बरसात है
फिर भी कलम से
प्यास लिखता हूँ,
समर्पित हो मगर फिर क्यों
वहम को पास रखता हूँ।
नजर पर रख कोई पर्दा
हमेशा पाप करता हूँ,
यहीं पर हीन हूँ मैं
बस गलत का जाप करता हूँ।
सही दिखता नहीं पर्दे से
कमियां खोजता हूँ बस,
मूढ़ हूँ यदि स्वयं के प्रिय पर
करता हूँ कोई शक।

सुबह कितनी मनोरम है

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह कितनी मनोरम है
उग चुकी सूर्य की
प्यारी किरण है।
उस पर तुम्हारी
मुस्कुराहट का चमन है।
तभी तो
आज कुछ ज्यादा चमक है,
क्योंकि पायल की सुनाई दे रही
मधुरिम खनक है।
सूरज उजाला दे रहा है
पर चमक तुम से ही है,
कुछ भी कहो आंगन की रौनक
तुमसे है तुमसे ही है।

सुनकर कांव कव्वे की

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुहल्ले में खड़े टावर में
सुनकर कांव कव्वे की,
सभी यह सोच कर खुश हैं
अब मेहमान आयेगा।
मगर वह पाहुना आयेगा
किसके घर किसी को भी
पता कुछ है नहीं
केवल भरोसा है कि आयेगा।
प्रियसी सोचती है आज उसका
प्रिय आएगा,
वृद्ध माँ सोचती है आज
उसका पुत्र आयेगा।
पत्नी सोचती है
दूर सीमा में डटा पति आज
डेढ़ महीने के लिए
छुट्टी में आयेगा।
बच्चे खुशी से सोचते हैं
जो भी आयेगा,
कुरकुरे, चॉकलेट और
चिप्स लायेगा।
मुहल्ले में खड़े टावर में
सुनकर कांव कव्वे की,
सभी यह सोच कर खुश हैं
कि कोई आज आयेगा।
– डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

तराना गुनगुनाती है

October 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दिल का भवन तो आपका
बेहद सजीला है,
फटे से पांव रखने में
मुझे लज्जा सी आती है।
*******************
आप हो सामने तो
मुस्कुराहट छुप सी जाती है
मगर भीतर ही भीतर से
तराना गुनगुनाती है।

सुलह की बात करने पर

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुलह की बात करने पर
न समझो डर गए हैं हम
बस यही चाहते हैं दूरियां
हो जायें थोड़ी कम।

प्यार तुम भी लुटा देना

October 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

न फंसना जाल में उनके
गिराना चाहते हैं जो
प्यार तुम भी लुटा देना,
बढ़ाना चाहते हैं जो।

जरा चिंगारियों के वास्ते

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

न रखना आंख अपनी तुम
इस तरह से सदा ही नम
जरा चिंगारियों के वास्ते
स्थान भी रखना।
किसी की बात कोई सी
न आये आपके यदि मन
उसे इग्नोर कर देना
मगर अपमान मत करना।

हम और वो

October 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उन्हें हम नहीं और
हमें वो नहीं भाते हैं
तब भी हम उनकी
और वो हमारी
यादों में आते हैं।

मोहब्बत की कड़ी जोड़ों

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेवजह मत उछालो
इस तरह से कीच दूजे पर,
जिंदगी मत बिताओ
दूसरों से रोज लड़-भिड़ कर।
प्यार से भी कभी जी लो
करो इज्जत सभी की तुम,
स्वयं ही दूर भागेंगे
न टिक पायेंगे कोई गम।
हर घड़ी लाभ मत देखो
कहीं पर स्वार्थ भी छोड़ो
तोड़ने से तो अच्छा है
मोहब्बत की कड़ी जोड़ों।

खड़ी बेरोजगारी है

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारे फिर लगाना
शक्ल देखो गौर से मेरी,
मुल्क का आक़िबत हूँ
आज हालत है बुरी मेरी।
खड़ी बेरोजगारी है
सामने पर स्वयं देखो
लगा नारे मेरे कानों में
यूँ पाषाण मत फेंको।
शब्दार्थ –
आक़िबत – भविष्य
पाषाण – पत्थर

भुला न पाओगे

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भुला के देख लो
चुनौतियां हैं तुम्हें,
न भुला पाओगे,
करोगे याद, अच्छाई से
या बुराई से,
मगर भुला न पाओगे।
करोगे याद नफरत से
या मुहोब्बत से,
याद तो आयेंगे हम
आयें भले ही जिस तरह से।
फेर के देख लो
नजरों को हमसे दूर तुम
मगर फिर फिर हमारी ओर
देखोगे न तुम रह पाओगे।
भुला के देख लो
चुनौतियां हैं तुम्हें,
न भुला पाओगे,
करोगे याद, अच्छाई से
या बुराई से,
मगर भुला न पाओगे।

फसल सच की उगाऊंगा

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सदा से ही उपेक्षित हूँ
सदा ही हार पाया हूँ
भले ही और आगे भी
निरन्तर हार पाऊंगा
मगर तुझको जमाने
आईना पूरा दिखाऊंगा।
डरूंगा झूठ से तेरे तो
कविता रूठ जायेगी,
अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा।

मुहोब्बत

October 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुहोब्बत चीज क्या है
यह न पूछो, क्या बताएं हम,
समझ खुद भी न पाए
हाँ, मुहोब्बत कर चुके हैं हम।

गैया तुम तो मैया हो

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गैया तुम तो मैया हो
है दूध अमृत तुम्हारा
जीने एक सहारा
जिससे पोषित होता है
मन और शरीर हमारा।
हर तरह काम आती हो
जीना हो या मरना हो
हर जगह जरूरत पड़ती
शुभ-अशुभ कर्म करना हो।
दूध, दही, घी, गोबर
गोमूत्र सभी कुछ पावन
जहाँ बंधी रहती हो
पावन होता है आंगन।
कहते ज्ञानीजन यह भी
भवसागर पार लगाती हो
इहलोक में अमृत देती
वह लोक सजाती हो।
गैया तुम तो मैया हो
है दूध अमृत तुम्हारा
जीने एक सहारा
जिससे पोषित होता है
मन और शरीर हमारा।

महफ़िल में रौनक भर दें

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझ में भी कमियां होंगी
तुझ में भी कमियां होंगी,
तुझ में, मुझ में दोनों में
लाखों ही कमियां होंगी।
आ कमियां खूबी में बदलें
मिलकर कर कदम बढ़ा लें
हम दोनों अपनी खूबी से
महफ़िल में रौनक भर दें।

कांटों सी क्यों चुभन रखूं

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कांटों सी क्यों चुभन रखूं
जब मिट्टी में मिल जाना है,
कभी किसी ने कभी किसी ने
निश्चित ही है जाना है।
फूलों सी खुशबू फैला दूं
जिधर चलूँ उधर महका दूँ,
प्यार का बीजारोपण करके
नफरत सारी दूर भगा दूँ।

नया सवेरा नई उमंगें

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नया सवेरा नई उमंगें
छोड़ो मन की सभी उलझनें,
बीते बातें एक तरफ कर
जीतो, पा लो नई मंजिलें।
रात निराशा की थी जो भी
बीत गई सो बात गई,
अब वो सारा दर्द भुला दो
गूंजे कुछ आवाज नई।
आशा की इक नई किरण से
ओस बूंद सुखें आखों में
उड़ने की फिर से बेचैनी
साफ दिखे तेरे पाँखों में।
नया सवेरा नई उमंगें
छोड़ो मन की सभी उलझनें,
बीते बातें एक तरफ कर
जीतो, पा लो नई मंजिलें।

विजदेव नारायण साही

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विजदेव नारायण साही जी का
आज जन्मदिन है,
उनको श्रद्धांजलि अर्पित कर लूं
यह कवि का मन है।
तीसरा सप्तक में उदित हुए,
अंदाज कबीरी मिलता है
मछलीघर, साखी में उनका
बौद्धिक परिचय मिलता है।
आलोचना क्षेत्र में ऐसी
धमक रही जिससे उनको
कुजात मार्क्सवादी कहते थे
ऐसा परिचय मिलता है।
हिन्दी कविता में ‘लघुमानव’ का
बिंब प्रस्तुत कर जिसने
मानव के उत्थान पतन को
शिद्दत से महसूस किया,
आज जन्मदिन पर उस कवि को
श्रद्धांजलि देने का मन है,
चार पंक्तियों की कविता से
साही जी को आज नमन है।

आज पा पा बोल दिया

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आठ महीने की गुड़िया ने
आज पा पा बोल दिया
धीरे-धीरे साफ शब्द कहकर
वाणी को खोल दिया।
वैसे तो गुड़िया रानी,
अपनी भाषा में गाती है,
कहती है कुछ, इठलाती है
देखो तो मुस्काती है।
लेकिन आज अचानक उसने
पा पा मुझसे बोल दिया,
आज अचानक साफ शब्द
कहकर वाणी को खोल दिया।

चाँद आया ही नहीं

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हो चुकी है रात
चारों ओर छाया है अंधेरा
चाँद आया ही नहीं
तारों में छाई है उदासी।
टिमटिमा कर कह रहे हैं
किस तरह से अब कटेगी
रात तन्हाई भरी।
एक पखवाड़े की होगी
चाँद से अपनी जुदाई,
याद करके वह जुदाई
मन में सिहरन है भरी।

गुलाब

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेमी दिवस को यदि तुम्हें
मैं दे न पाया था गुलाब
तो न समझो बेवफा हूँ
व्यस्त था मैं बेहिसाब।
प्यार की निचली अदालत
में सबूतों की जगह
ले न जाना तुम इसे
टिक न पायेगा खिलाफ़।
प्रेम हो दिल में बसे हो
आज ही ले लो गुलाब
तुम तो मेरी जिंदगी में
खुद खिले से हो गुलाब।

खुश रहे मन

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत हिलो देखकर
दूजे की चकाचौंध को तुम
जो भी है पास अपने
खुश रहो, संतुष्टि पाओ।
पेट भरने को भोजन
और वस्त्र हों ढके तन
सिर छुपाने को छोटा सा
भवन हो खुश रहे मन।
इससे ज्यादा, अधिक इससे
करेगा मानसिक विचलन,
करो मेहनत , मिले जो भी
उसी से खुश रखो मन।

दिल में पा लेंगे

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

करो कितनी भी कोशिश
आप हमसे दूर जाने की,
मगर जिद है हमें भी
आपको अपना बनाने की।
मगर हम वो नहीं जो
एकतरफा प्यार से छीनें,
जबर्दस्ती करें पाने को
गंदी राह अपनाएं।
हमें तो दिल में रखना है
यहीं दिल में सजा लेंगे,
फिर रहोगे कहीं भी आपको
हम दिल में पा लेंगे।
जब कभी याद आयेगी
यहीं महसूस कर लेंगे,
आपको याद कर दिल के
गमों को दूर कर लेंगे।

मुहोब्बत

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुहोब्बत में इतने अश्किया न बनिये,
मुहोब्बत है कोमल, संभल कर ही चलिये।
मुहोब्बत हो दोनों तरफ तब नफा है,
नहीं तो मुहोब्बत सजा ही सजा है।

चिंता न कर तू चिंता चिता है

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चिंता में डूबे हुए ओ मनुज सुन
चिंता न कर तू चिंता चिता है।
चिंता से होता नहीं लाभ कुछ भी,
होता है वो जो रब ने लिखा है।
भले ही तुझे कष्ट घेरें अनेकों
तेरी राह में लाख बाधाएं आएं,
तब भी न होना विचलित कभी तू
कष्टों के आगे कदम जीत पायें।
सुखी कौन, सबके दुख अपने अपने,
है कौन ऐसा जो गम ने न घेरा,
अभी जो तुझे लग रहा है अंधेरा
वही कल सुबह तुझको देगा सवेरा।
हिम्मत से दुःख की रातें बिता ले
तेरी सुबह में सुख भी लिखा है।
चिंता में डूबे हुए ओ मनुज सुन
चिन्ता न कर तू चिंता चिता है।
चिंता से होता है नहीं लाभ कुछ भी
होता है वो जो रब ने लिखा है।

मिठास दूँगा

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शब्द हूँ
भुने चने सा
सूखा सा,
आपकी रसना के रस
में मिलकर मिठास दूँगा।
कह डालो कि
मैं भी आपका हूँ
फिर मैं भी
अपनेपन का एहसास दूँगा।

केवल सावधानी रखनी है

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विपरीत समय है,
मानवता पर संकट के बादल छाए हैं।
जहां-तहां महामारी ने
सबके चेहरे मुरझाए हैं।
ऐसे में संयम रखना है
और नहीं इससे डरना है,
मुंह पर मास्क लगाए रख कर
इस संक्रमण से बचना है।
माना इसने पकड़ लिया
तब भी घबराहट दूर रहे
उच्च मनोबल रखकर इससे
सारे रोगी जीत रहे।
केवल सावधानी रखनी है
मन का बल स्थिर रखना है
सारी दुनिया ने जल्दी ही
रोगमुक्त हो जाना है।

प्यार से रहना ही सर्वोत्तम है

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विरोध भी करना है तो जायज कीजिये,
अन्यथा विरोध की सोच गायब कीजिये।
प्यार से रहना ही सर्वोत्तम है
झगड़े में कौन किस से कम है।

तो मैं भी कवि नहीं

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दो पंक्तियाँ तुम पर न लिख पाऊं
तो मैं भी कवि नहीं,
स्वप्न तक शायरी न पहुंचाऊं
तो मैं भी कवि नहीं।
जब कभी मन टूट कर
बिखरा हुआ हो, दर्द हो,
दर्द तक मलहम न पहुंचाऊं
तो मैं भी कवि नहीं।

हंसते हो महीने में

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मनोरम रात है
बिखरी हुई है चांदनी
तुम्हारी मुस्कुराहट सी
दिखाई दे रही है चांदनी।
जिस तरह चाँद खिलता है
कभी कुछ दिन महीने में,
उसी की भांति तुम भी हो
जो हंसते हो महीने में,
देता है जब मालिक कभी
वेतन महीने में।

नशा

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सो जा मजे से
चैन से तू सोमरस पीकर
न कर चिंता हमारी
हम भले, भूखे ही मर जाएं,
तेरे नशे ने ही हमें
सड़कों में ला पटका,
तुझे अब भी नहीं है लाज
जाएं तो कहां जाएं।

पड़ चुकी है साँझ

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पड़ चुकी है साँझ
घर घर में चमकते बल्ब ऐसे
लग रहे हैं, जैसे तारों ने किया
धरती में डेरा।
और चंदा आसमां में
आ चुका है, फुल चमक में,
चाँद-तारे और बल्बों का मिलन
फैला चमन में।
साथ देने आ गयी शीतल हवा
भी साथ में,
अद्भुत नजारा सज गया है,
इस अंधेरी रात में।

पैनी निगाहों में

October 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ओस की बूंद अब तुम भी
न दो यूँ ठेस पांवों में
अभी तो चुभ रहे हैं हम
कई पैनी निगाहों में।

मंद आदत त्याग दो

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद देखो, चाँद की
शीतल छटा का लाभ लो।
दाग-धब्बे खोजने की
मंद आदत त्याग दो।
इंसान में कमियां भी होंगी
और अच्छाई भी होगी
बस कमी ही खोजने की
मंद आदत त्याग दो।
हो सके तो गोंद बन
टूटे दिलों को जोड़ दो,
टूटे हुए को तोड़ने की
मंद आदत त्याग दो।
राह में कोई मुसाफिर
यदि पड़ा हो कष्ट में
दो उसे थोड़ी मदद
नजरें चुराना त्याग दो।
चाँद देखो, चाँद की
शीतल छटा का लाभ लो।
दाग-धब्बे खोजने की
मंद आदत त्याग दो।

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