muktak
मैं एेसे दरिया के किनारे बैढा हुं,
हर घडी जहा से समुन्दर दिखने लगता है।
ये मेरा दिल भी एक जिद्दी बुजुर्ग् जैसा है,
जो रात होते ही किस्से सुनाने लगता है।
आपका अपना कवि नवीन गौड
मैं एेसे दरिया के किनारे बैढा हुं,
हर घडी जहा से समुन्दर दिखने लगता है।
ये मेरा दिल भी एक जिद्दी बुजुर्ग् जैसा है,
जो रात होते ही किस्से सुनाने लगता है।
आपका अपना कवि नवीन गौड
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Bhut khub….naveen ji
waah…..bht khoob
wow
bahut ache
वाह बहुत सुंदर
Very nice