पिता
किसी अनजान से बोझ से झुका झुका ये फल दरख्त़ की झड़ों में ढूंढ़ता सुकून के चन्द पल। कभी मिले पत्तों के नर्म साए तो कभी इनमे छनकर आती कुछ सख्त़ किरणें भी। बहुत रोया ये हर उस लम्हे जब इस दरख्त़ को आम का पेड़ कहा किसने भी। मुझे मिठास तब मिली जब इस दरख्त ने आसमां से ज़मीं तक हर चीज़ को चखा। गिरते पत्तों के बदलते रंग देखे तो इस उंगली को उम्र भर थामे रखा। मुझे न छुओ चाहे बनादो इन पत्तों के पत्तल किसी अनजान से... »