एक पहेली
तुम एक पहेली सी लगती हो
समझ ही नही आती हो
जब मैं खुश होती हूँ
तुम दूर खड़ी मुस्कुराती हो
जब मैं पीड़ा में होती हूँ
तुम धीरे से कंधा सहलाती हो
जब खुद को दर्पण में देखती हूँ
बहुत बार तुम से ही मिल जाती हूँ
जब भाई बहन से मिलती हूँ
तेरी ही परछाई को छू लेती हूँ
जब अपने बच्चों को प्यार करती हूँ
खुद को तेरी ममता में लिपटा पाती हूँ
जब विपदा में खुद को पाती हूँ
तेरी दी शिक्षा से ही आगे बढ़ पाती हूँ
हर पल अंग संग रहती हो
फिर क्यो बातें अधूरी रह जाती है
दिल में कसक अनोखी उठती है
खबावों में भी वीरानी सी बहती हैं
तभी तो पहेली सी लगती हो
समझ ही नहीं आती हो।।
जब मैं खुश होती हूं, तुम दूर खड़ी मुस्कुराती हो
जब मैं पीड़ा में होती हूं तुम धीरे से कंधा सहलाती हो,
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता
Great poem
Thanks a lot
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत आभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी
माँ सच में बहुत प्यारी होती है
बहुत बहुत आभार प्रज्ञा