खुश रहे मन
मत हिलो देखकर
दूजे की चकाचौंध को तुम
जो भी है पास अपने
खुश रहो, संतुष्टि पाओ।
पेट भरने को भोजन
और वस्त्र हों ढके तन
सिर छुपाने को छोटा सा
भवन हो खुश रहे मन।
इससे ज्यादा, अधिक इससे
करेगा मानसिक विचलन,
करो मेहनत , मिले जो भी
उसी से खुश रखो मन।
वाह वाह सर कितनी ज्ञानवर्धक रचना है । सुंदर भाव ।हमेशा खुश रहने की सकारात्मक सोच को अभिवादन । बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत खूब, waah waah सर, बहुत बढ़िया लिखा है
अतिसुंदर
बहुत ही लाजवाब सर, वाह वाह
वाह वाह, अतिसुन्दर
Great poem, very nice