चितेरा
ज़िन्दगी की राहों का
है ये कौन चितेरा,
धूमिल -धूमिल गलियारों में
है करता कौन सवेरा।
घनघोर घटा से केशों
पर डोले मुग्ध पपीहा,
किसने उपवन रंगीन किया
है ये कौन चितेरा।
अलि मंडराते पुष्पों पर
है किसने रंग बिखेरा,
रति के यौवन से भी सुंदर
लगता है आज सवेरा।
विरह की वेदना से जलता है
‘प्रज्ञा’ का जीवन डेरा,
अब हर रात अमावस की
मुट्ठी में बंद सवेरा।।
कवयित्री:-
प्रज्ञा शुक्ला
वाह
थैंक्स
Nice Nice
धन्यवाद
अति सुन्दर।
आभार आपका
Nyc
बहुत सुंदर पंक्तियां