तन्हा-तन्हा
दिल खाली-खाली क्यू है
शाम भी क्यू तन्हा-तन्हा लागे है ।
बिन कारन, क्यू बेचैनी का साया है
यह कैसा उलझन वाला पल आया है
उम्मीदों की किरण कहाँ अब,
घोर निराशाओं की काली छाया है
अपने भी अब बेगाना-सा भागे है,
शाम भी क्यू तन्हा-तन्हा लागे है ।
निन्द नहीं इन नयनों में, ख्वाब गये हैं दूर कहीं
मुस्कान कहाँ इन अधरों पे, आशाओं की गीत नहीं
जज़्बा कहाँ हासिल करने की अब,
शील बना यह तन मेरा, इस मन में है जज़्बात नहीं
ओझल पथ है मेरा, घोर अँधेरा आगे है ,
शाम भी क्यू तन्हा-तन्हा लागे है ।
सुंदर
सादर आभार
बहुत खूब, सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद
अति सुंदर
सादर आभार
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद